Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
View full book text
________________
आधुनिक जैन कोश-ग्रन्थों का मूल्यांकन
डॉ० श्रीमती पुष्पलता जैन
किसी भाषा और उसमें रचित साहित्य का सम्यक्-अध्ययन करने के लिए तत्सम्बद्ध कोशो की नितान्त आवश्यकता होती है । वेदो और सहिताओ को समझने के लिए निघण्टु और निरुक्त जैसे कोशो की रचना इसीलिए की गई कि जनसाधारण उनमे सन्निहित विशिष्ट शब्दो का अर्थ समझ सके । उत्तरकाल मे इसी आधार पर सस्कृत पालि और प्राकृत के श०कोशो का निर्माण आचार्यों ने किया। अमरकोश विश्वलोचनकोश, नाममाला, अभिधानप्पदीपिका, पाइयलछीनाममाला आदि जैसे अनेक प्राचीनको उपलव्य है । इनमे कुछ एकाक्षर कोश है और कुछ अनेकार्थक शब्दो को प्रस्तुत करते हैं । कुछ देशी नाममाला जैसे भी शब्दकोश है जो देशी शब्दो के अर्थ को प्रस्तुत करते है।
प्राचीन कोश-साहित्य के अध्ययन से हम कोशो को कुछ विशेष वर्गो मे विभाजित कर सकते हैं । उदाहरणत व्युत्पत्ति कोश, पारिभाषिक कौश, पर्यायकोश, व्यक्तिकोश, स्यान-कोश, एकभाषा कोश, बहुभाषा कोश आदि । इन कोशो के माध्यम से साहित्य की विभिन्न विधाओ एव उनमें प्रयुक्त विशिष्टशब्दो के आधार पर भाषावैज्ञानिक तथा सास्कृतिक इतिहास की सरचना भी की जा सकती है। ___आधुनिक कोशो का प्रारभ उन्नीसवी शताब्दी से माना जा सकता है। इन कोशो की रचना-शैली का आधार पाश्चात्य विद्वानो द्वारा लिखित शब्द कोश रहा है । उन्नीसवी-वीसवी शताब्दी मे प्राकृत और जैन साहित्य तथा दर्शन के विद्वानो ने भी कुछ कोशमन्थो का निर्माण किया है । अध्येताओ के लिए उनकी उपयोगिता निर्विवाद रूप से सिद्ध हुई है । ऐसे कोश ग्रन्थो मे हम विशेष १५ मे अभिधान राजेन्द्र कोश, पाइयसहमहण्णव, अर्धमागधी डिक्सनरी, जनेन्द्र सिद्धान्त कोश