Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
View full book text
________________
सस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रश की आनुपूर्वी मे कोश साहित्य ३८१
चक्कलय चकला x
चकली चकली
भक्खण मक्खन मक्खपा मक्खन मक्खणु लोणी माखण माखन x
माखन (असमिया) चालय चकला x चकला चकला चकुलो चकलो चाकी x
चकलु (कश्मीरी) कुंदीर कुदरू कुदरू कुदरू x x x x कुदुर वाइगण बैगन वगण बैगन वाणु वागे रीगुणु वेगुन वागण
वागुन् (कश्मीरी), बेडना (असमिया) चोरु चोर चोर चोर चोरु चोर चोर चोर चोर
चूर (कश्मीरी), पोर (असमिया) पाणिअ पानी पाणी पानी पाणी पाणी पाणी जल पाणि
पानी (असमिया) पद्दल बादल बद्दल बादल ककर ढग वादलु मेघ मेध घोड़ घोडा घोडा घोडा घोडो घोडा घोडो घोडा घोडा
चोरों (असमिया), गुरंभु (तेलुगु) __इसी प्रकार वलह' (बलद), 'वधार' (धार), 'खट्टा' (खट्टा), 'गिल्ल' (गीला), 'पाहुण' (पाहुना) और विहल' (विटाल, अस्पृश्य) आदि शब्दो के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय भाषाओ के सम्यक अध्ययन व अनुसन्धान के लिए प्राकृत-अपभ्रश भाषाओ का अध्ययन आवश्यक ही नही, अनिवार्य भी है।
सदर्भ १ ए०ए० हिल (स०) लिपिस्टिक्स, १९६६ प० ४५ । २ कने, सुमिन भगेश लैक्सिकोग्राफी, १९६५, पृ० १२ ३ मरियो पेई इन्विटेशन टु लिग्विस्टिक्स, लन्दन, १९६५, पृ० ६६ ४ लिओनार्ड ब्लूमफील्ड लग्वेज, लन्दन, १९५८, पृ० १६२ ५ वही, पृ० २६४-६५ ६ “साधुत्व ज्ञानविषया सपा व्याकरणभूति ।"-पाक्यपदीय (भतृहरि) ७ भट्टाचार्य, रामशकर सस्कृत भाषा मे कोप प्रामाण्य, हिन्दी अनुशीलन,
पौष-फाल्गुन, वि०स० २०१०, पृ० २१-२६ ८ डा० हेमचन्द्र जोशी 'सरस्वती' पत्रिका में प्रकाशित लेख, अक्तूबर, १९६०, पृ० २३१ ६ कले, सुमित मगेश लेक्सिकोग्राफी, १९६५, पृ० ५ १० डा० नेमिचन्द्र जन जन को-साहित्य, आचार्य भिक्षु स्मृति-ग्रन्थ, कलकत्ता १९६१,
द्वितीय खण्ड, पृ० १८६ ११ त णिसुवि वयणु जा-सारउ सयल-कल दक्खव३ भडार ।
अण्ण् असि मसि किसि वाणिज्ज अण्णाहु विविह पयारउ विजउ ।। -पसभपरिउ, २, ८-६