Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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३८० मस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्पग
मुभल मोनी
छिल्लर ---छोलर टोल टोला (मुहल्ला) (पोखर) सव्वल-सबल, विमूरय विसूरना
टिअप --ठी
कुशी
चुपया- --चूक, मूल गिलन -गीला
चिटिआ चिट्ठी कहि----कहा सेल्लग-~-सेला, च५ चापना, भीचना भाला झप झापना, नभालिउ सम्हाला ढाकना खिसिय-खिसक
खट्टलटना
च७ि- पंगा
मच्छर मच्छर तोमण तमन (साग), तेउन खर हावर मुगदालि मूग पक्कल बकला, छिनको पक्कल बकला, TE
पीट पीटना की दाल પટવારી ૫દવારી નાની નાની
નવોન્મ પ્રોનના दद दद मेर-~मर्यादा
ऊ छिना, उमेड उमडना उड ओडा, गहरा
रालि राड, कलह इस प्रकार अपभ्रश मे भी अनेक देशी शब्द मिलते है जो वर्तमान जन-वोलियो मे परम्परा से अधिगृहीत हुए है । ११२ इनमे दक्षिण की भाषाओ तया वोलियो मे ही नहीं, किन्तु उत्तर भारत की विभिन्न भाषाओ तथा बोलियो मे प्रयुक्त शब्द उपलब्ध होते है । इस प्रकार की देशी-शब्दावली का एक स्वतन्न शब्दकोप' निमित होना चाहिए । अन्त मे हम प्राकृत के कुछ ऐसे शब्दो की वानगी दे रहे है जो भारभीय भाषाओ मे अत्यन्त प्रचलित है। प्राकृत हिन्दी पजावी उर्दू सिन्धी मराठी गुजराती बगला ओडिया अन्य અત્ન ના ના મના નન્ના મના પિત ના પાન વોટ્ટ પેટ ૪ પેદુ પો પેટ પેટ પેટ हड्डिय हड्डी हड्डी हडी हड्डो हाड हाडकु हा हा दहि दही दही दही द्रही दही दही ६५ दहि नासपेअ नास० ना५पा० नाश० नास० नास० नास्पा० न्यास्पानास्पा० बहेडय बहेडा बहेडा वेहेडा बहेरो बेहड़ा बहेडा क्यडा पाहाड। चाउल चावल चावल चावल पावर भात भात भात x
चोर (मलयालम) ८५कारि तरकारी त२० तर० x x x तर० x
तरकारि (कन्नड)