Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश की आनुपूर्वी मे कोश साहित्य ३६५
विद्वानो ने भी इसे द्रविड भाषाओ से आगत माना है । वास्तव मे यह कन्नड आदि भापाओ से उधार लिया हुआ शब्द है । कन्नड, तमिल, तेलुगु, और तेलु मे यह शब्द ज्येष्ठ भगिनी का वाचक है । यह कन्नड से 'अक्क', तमिल में 'अक्का', तेलुगु से 'कोडगु' और तुलु मे 'अक्के' है । "
२ कडप्प- -ढेर (देशी ० २, १३) । प्राकृत अपभ्रंश में यह 'कडप्प कलाप अर्थ मे मिलता है । यह शब्द भी मूल रूप मे द्रवि० भाषाओ का माना जाता है । दक्षिण की भाषाओ मे यह समूह अर्थ वाचक है । यह कन्नड में 'कल', तेलुगु मे 'कलपे', तमिल मे 'कलप्पड' और तुलु मे 'कल' है । कन्नड मे समूह अर्थ का वाचक एक 'कम्प' शब्द भी है ।" प्राकृत मे यह 'कडप्प' है, जो मराठी मे 'कडप' प्रचलित है ।"
३ कुरल कुटिल केश (देशी० २,६३) । प्राकृत अपभ्रंश मे यह देशी शब्द अत्यन्य प्रसिद्ध है | भारत की लगभग सभी भाषाओ मे यह प्रचलित रहा होगा । इसका मूल स्रोत द्रविड वर्ग की भाषाएँ माना जाता है । कन्नड मे यह 'कुरुल' है, तमिल मे कुरुल-कुरुल है, मलयालम मे 'कुरुल' है और तेलुगु मे 'कुरुलु' है। जूनी गुजराती मे यह 'कुरुल' है और मराठी मे 'कुरुल' है ।"
४ गोड, गोडी मजरी, वोर (देशी ० २,६५) । ये दोनो ही शब्द भिन्न-भिन्न अर्थ मे प्राकृत-अपभ्रंश में प्रचलित रहे । यह कनड मे 'गोण्डे', 'गुड', तेलुगु, मलयालम मे 'कोण्डे' है । यह द्रष्टव्य है कि प्राकृत मे भी 'गोड' के स्थान पर 'कोड' शब्द प्रसिद्ध रहा । महाकवि पुष्पदन्त के अपभ्रंश महाकाव्य 'महापुराण' मे (६६,४,३) भी 'गोड' शब्द मिलता है । अभिमानमेरु पुष्पदन्त मान्यखेड (हैदराबाद) के थे, इसलिये उनकी भाषा मे इस शब्द का होना स्वाभाविक है ।
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५ चिक्क, चिक्का अल्प, स्तोक ( देशी० ३,२१) । टी० वरो ने इसे द्रविड शब्द बताया है।' कन्नड में यह 'चिक्क' है और अर्थ भी अल्प है । मराठी मे 'चिके इसी अर्थ का वाचक है । खोवार ( दर्दिक ) भाषा मे भी 'चिक्' का अर्थ अल्प कहा जाता है। ६ चिप्पि अग्नि (देशी० ३,१० ) । चिच्चि या चिच्ची द्रविड शब्द माना गया है । तेलुगु मे यह 'चिच्चु' है और कन्नड मे 'किच्चु ' है । अपभ्रंश के 'महापुराण' मे भी 'चिच्चि' शब्द अग्नि अर्थ मे लक्षित होता है । ५
७ छाण
गोवर (देशी ० ३,३४) । यह भी द्रविड शब्द माना गया है । तमिल मे यह 'छाणि' है और गुजराती मे 'छान' है । छत्तीसगढ़ी बोली मे गोवर से बने हुए 'कडे' को 'छेणा' कहा जाता है जो 'छा' से विकसित है | अपभ्रंश के 'महापुराण' (५७,१०,११ ) मे भी 'छाण' शब्द का प्रयोग उक्त अर्थ मे ही परिलक्षित होता है ।
5 तण्णाय गीला (देशी ० ५,२ ) । यह प्राकृत अपभ्रण मे भी मिलता है ।