Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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३६६ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
वैसे यह भी द्रविड शब्द माना जाता है। कन्नड मे 'तण्ण' शब्द का अर्य ठडा है। तमिल मे 'तण्णि' का अर्थ आर्द्र है । ___ तलार कोतवाल (देशी० ५,३) । प्राकृत-अपभ्रश और द्रविड भापाओ मे 'तलार' और 'तलवर' दोनो शब्द उपलब्ध होते है। कन्नड मे यह 'तलवार' शब्द है जिसका अर्थ है नगररक्षक । द्रविड १०८ 'तलेयारि' का भी उल्लेख मिलता है।६ अपभ्रश के महापुराण (३०,१७,१०) मे 'तलवर' शब्द का प्रयोग मिलता है।
१० पोट्ट ५८ (देशी० ६,६०) । यह द्रविड शब्द है। प्राकृत-अपभ्रश मे यह शब्द बहुत प्रचलित रहा है । इसी शब्द से 'पोट्टल' बना । तेलुगु में 'पोट्ट' ही है। प्राकृत मे इसके अतिरिक्त 'पिट्ट' शब्द भी पेट अर्थ का वाचक है। इसी शब्द से सस्कृत का पेटक, पेटा शब्द आदि निर्मित हुए प्रतीत होते है। पश्चिमी पहाडी और उसकी बोलियो भद्रवाही और भलेसी मे 'पैट', कुमायू, नेपाली और असमी मे 'पेट' है । बगला मे भी यह पेट' है । उडिया मे इसके लिए 'पेटा' है और प्राचीन मारवाडी मे भी यही है । अवधी और उसकी बोली लखीमपुरी मे, हिन्दी, भोजपुरी तथा गुजराती मे यह 'पेट' ही है। मैथिली मे इसे 'पेट' वोलते है। सिन्धी और उसकी बोलियो मे भी यह प्रचलित है । इस प्रकार नव्य भारतीय आर्य भाषाओ मे यह सर्वाधिक प्रचलित शब्द है।
इस प्रकार के अनेक शब्द जो केवल द्रविड भाषाओ मे ही नही, सिनो-तिब्बती कोल-मुण्डा या आस्ट्रिक वर्ग की भापाओ के शब्द भी 'देशी' शब्द के रूप मे उपलब्ध होते हैं । भारोपीय भाषाओ से उक्त अन्य वर्गों की भाषाओ का निकट सवध होने से उनके शब्द प्रवेश पा गये । इन सभी वर्गों मे द्रविड वर्ग महत्त्व का है। विशेष कर उसके ही शब्द 'देशीनाममाला' मे मिलते है । अत देशी शब्दो का सम्बन्ध द्राविड भाषाओ की शब्द-सम्पदा से मानना चाहिए । कुछ अन्य शब्द हैं णेसर (देशी० ४,४४,) सूर्य । कन्नड 'नमृ' (रवि), तमिल 'नहर' (रवि-किरण), मलयालम 'नर' (दिवसप्रकाश), पुल्ली (देशी० ६,७६) व्याघ्र । प्राकृतअपभ्रश 'पुलिन', कन्नड पुलि', तमिल, तेलुगु, मलयालम, तुलु, 'पिलि' (व्याघ्र), पावो (देशी० ६, ३८) सर्प । कन्नड पावु' तेलुगु 'पामु', तमिल पामवु' सर्प इत्यादि । ___आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओ और उनकी बोलियो मे आज भी घर मे, खलिहान मे, वर्ग विशेष मे ऐसे देश्य शब्दो का चलन है, जिसका सीधा सम्बन्ध हमे देशीनाममाला मे सकलित शब्दो मे दिखलाई पडता है तथा जिनके अध्ययन से हम सरलता से इस निष्कर्ष पर पहुचते है कि इन देश्य शब्दो का विकास प्राकृत तथा इन देशी शब्दो से हुआ है। डॉ० गुप्त ने ऐसे सैकडो शब्दो का विवरण दिया है, जो कृपि जीवन में प्रचलित हे और जिनको देशी कहा गया है। इसी प्रकार से डॉ० वैद्य