Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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सस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रश की आनुपूर्वी मे कोश साहित्य ३४६
मिलती है। इसी प्रकार से "शब्दभेदप्रकाश" के नाम से चार-पांच को उपलब्ध होते हैं। उनमे से कुछ प्रकाशित भी हो चुके है। उन सब का यहाँ उल्लेख करना इस छोटे-से लेख मे सम्भव नहीं है।
संस्कृत के जैन कोशकार
सस्कृत मे जिन जन आचार्यों ने शब्दकोश-निर्माण का महान् कार्य किया, उनमे शाकटायन का नाम उल्लेखनीय है। शाकटायन का काल पाणिनि से भी पूर्व का है। पाणिनि का समय विक्रम के पांच सौ वर्ष पूर्व माना जाता है। उन्होने अष्टाध्यायी मे शाकटायन का उद्धरण देते हुए उनके नाम का उल्लेख किया है। यद्यपि कोई उल्लेख नहीं मिलता है, तथापि अनुमान यह है कि आचार्य पूज्यपाद ने कोई कोश ग्रन्य अवश्य लिखा होगा। उपलब्ध जैन कोशो मे आचार्य धनजय कृत नाममाला' सर्वप्रथम है। महाकवि धनजय का समय आठवी शताब्दी माना गया है। इस शब्दकोश की विशेषता यह है कि महाकवि ने २०० श्लोको मे संस्कृत भाषा के प्रमुख शब्दो का सकलन कर गागर मे सागर भरने की उक्ति चरितार्थ की है । शब्द से अन्य शब्दान्तर रचने की इनकी अपनी विलक्षण पद्धति है। इस पद्धति से सस्कृत का सामान्य जानकार भी शब्दान्त र रचना कर सस्कृत शब्द-कोश का भण्डार बढा सकता है । जैसे कि यह एक सामान्य नियम है पृथिवी वाचक शब्दो के आगे 'धर' शब्द जोड देने से वे पर्वतवाची हो जाते है भूधर, महीवर आदि । इसी प्रकार दूसरा नियम है मनुष्य वाचक शब्दो के साथ 'पति' शब्द जोड देने से वे राजा अब के वाचक हो जाते है नरपति, मानवपति, जनपति आदि । इसी प्रकार वृक्ष वाचक शब्दो के आगे पर' शब्द जोड देने से वे बन्द र अर्थ के वाचक हो जाते है तरुचर, पादपचर आदि । इस तरह के अनेक नियम इस कोश मे दिए गए है, जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं
१ आकाश शब्द के साथ 'चर' शब्द जोड देने से वह विद्याधर का वाचक हो जाता है नभश्चर, नगनचर, मेधपयचर, अभ्रमार्गचर, अन्तरिक्षचर आदि।
२ हल वाचक शब्द के साथ 'कर' शब्द जोड देने से बलभद्र के वाचक हो जाते है जित्याकर, हलिकर, हलकर, सीरकर, लागलकर इत्यादि ।
३.. जल वाचक शब्द के साथ 'चर' शब्द के जोड देने से मत्स्य वाची नाम वन जाते है, जैसे कि जलचर, नीरचर, पयश्चर, अम्भश्चर, वि५चर, जीवनचर, तीयचर, कुशचर इत्यादि।
४ जल पाचक शब्द के साथ 'प्रद' शब्द जोड देने से मेघवाची नाम बन