Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रश की आनुपूर्वी मे को साहित्य ३४७
प्राकृत मे व्याकरण तथा शब्दकोश की रचना नही हुई होगी। यही समय नियुक्तियो तथा चूणियो का भी रहा है । लगभग पांचवी शताब्दी से दसवी शताब्दी के मध्य अधिकतर आगम-साहित्य के अन्य सूत्र ग्रन्थो, नियुक्तियो एवं चूणियो की रचना हुई । प्राकृतो के रूढ होते ही लगभग छठी शताब्दी से अपभ्रश अस्तित्व मे आ जाती है । अध्ययन से यह भी स्पष्ट है कि आगम ग्रन्थो के लिपिवद्ध होने तक किसी प्रकार की रचना की आवश्यकता नही थी। जन परम्परा के अनुसार जैन आगम ग्रन्थ भगवान महावीर के ६६३वे वर्ष मे सर्वप्रथम वल्लभी मे देवधिगणिक्षमाश्रमण ने लिपिवद्ध किए । इतने लम्बे समय तक उन्हें कण्ठस्थ ही रखा जाता रहा और उसका परिणाम भी जो बतलाया गया है, वह वर्तमान मे प्राप्त ग्रन्थो की अपेक्षा बहुत ही अधिक था। इसका अर्थ यह है कि लगभग ईसा की पांचवी शताब्दी मे जैनागम लिपिबद्ध हुए और तब तक निश्चित रूप से कोई शब्दकोश नही रचा गया था। किन्तु संस्कृत मे निरुक्त लिखे जा रहे थे। निघण्टु ग्रन्थो की परम्परा प्रचलित थी। अतएव साहित्य-रचना की दृष्टि से सस्कृत-परम्परा प्राचीन है।
सस्कृत-शव्दकोश की परम्परा
यह पहले ही कहा जा चुका है कि यास्क के निरुत मे जिन चौवीस नामो का उल्लेख किया गया है, उनमे से एक नाम शाकटायन का भी है । सस्कृत वैयाकरणो मे आठ की प्रसिद्धि है५ इन्द्र, चन्द्र, काशकृत्स्न, आपिशल' शाकटायन, पाणिनि, अमर, जैनेन्द्र । भट्टोजी दीक्षित ने अमरकोश की टीका मे आचार्य आपिशल का एक वचन उद्धृत किया है, जिससे स्पष्ट है कि उनका लिखा हुआ कोई कोशग्रन्थ भी था जो उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार केशव स्वामी ने "नानाणिव सक्षेप" मे शाकटायन के कोश से वचन उद्धृत किए है। किन्तु आज उनका लिखा हुआ कोश उपलब्ध नही है। भले ही निरुत मे अनेक निरुक्तकारो का उल्लेख हुआ हो और उनके उद्धरण भी मिलते हो, किन्तु यास्क के पूर्ववर्ती आचार्यों मे शाकटायन, गार्य और औदुम्बरायण ऐसे आचार्य हुए हैं जिन्होने भाषाशास्त्र की दिशा मे मौलिक प्रयोग किए। इन्ही शाकटायन का व्याकरण भारतीय ज्ञानपी० प्रकाशन से प्रकाशित हो चुका है । सम्भवत कोश भी किसी भाण्डागार मे दवा ५डा होगा।
प्राच्यविद्या-विशारद वूलर ने सर्वप्रथम सस्कृत-शब्दकोशो की विवरणिका प्रस्तुत की थी। सस्कृत मे अनेक ऐसे शब्दकोशो का उल्लेख कोशो मे तथा टीका ग्रन्यो मे मिलता है, जो लुप्तप्राय हैं । इन कोशो मे भागुरि, व्याडि, कात्यायन और विक्रमादित्य के शब्दकोश प्राचीन माने जाते है । भागुरि कृत शब्दकोश, उत्पलिनी (व्याडि), नाममाला (कात्यायन), शब्दार्णव (वाचस्पति), ससारावर्त