Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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३२४ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
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अतएव माध्यमिक राजस्थानी तक अपभ्र श 'इ' ही अधिकरण मे अधिक प्रयुक्त हुआ है। परसर्गों का प्रयोग--इ वाले रूपो की तुलना में कम मिलता है। वीरसतसई मे प्रथम दोहे मे ही परसर्ग 'पै' का प्रयोग हुआ है--
१ लाऊँ पे सिर लाज हू सदा कहाॐ दास २ वीर हुतासण बोल मे, दीस हेक न दोस ३. सूरा आलस ऐस मे अकज गुमाई आव ४ खोयो मै घर मे अवट, कायर जवुक काम ५ उरसां खेती वीज धर, रजवट उलटी राह ६ आज घरे सासू कहे, हरख अचाणक काय ७ देख सखी होली रम, फौजों मे धव एक ८ जगता यावां चैकसी, जे सुसी बवाल & विण माथै दल वाढियो, आँख हिये के सीस १० मोनू ओछ कचुवै हाय दिखाता लाज ११ तोहि मचाई छोकर, वैरी रे घर बूव १२ गो० गया सब गेहरा, वणी अचाणक आय १३ भाभी हू डोढी खडी लीधाँ खेटक रूक १४ घोड़ा चढणी सीखिया भाभी किस काम १५ सूने घर सीधू थिया आपा रा मिजमान १६ हूँ बलिहारी राणियों, भ्रूण सिखावण भाव १७. घर मे देखू दोय कर रण मे दोय हजार १८ सीहा रे गल साकल बे भड घाल हाथ १६. पैला काकड, पीव घर वीच बुहारे खेत २०. भाभी कुल खेती बिचा, भय न हुवे धव भग २१. रण हाली चारणा चाहै अब लग चन
उपर्युक्त उद्धरणो से स्पष्ट होता है कि 'ऑ' और 'ए' वाले रूप अपभ्रश परपरा के है । 'मे' प्राकृत परपरा से मध्ये >मज्झे > माँझ >मॉहि > मे से आया है, जो पहले इस रूप मे नही मिलता। एक नई विशेषता जो आधुनिक राजस्थानी मे विकसित हुई है, अविकरण मे शून्य प्रत्यय का योग है। उपर्युक्त उदाहरणो मे 'घर', 'गोठ', डोढी, गल और रण पद अधिकरण मे है, पर इनके आगे अधिकरण सूचक विभक्ति नहीं है। आधुनिक राजस्थानी मे 'आँ' चलता है-'घरों चालो' जैसे वाक्य नित्य वोलचाल की राजस्थानी मे मिलते ही हैं। परन्तु परसर्ग का प्रचलन ही अव अधिक है
ओल यू --- थारी ओल यू
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