Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
देखाऽइ = दिखाता है |
४ आर
घटइ > घटारड
दिवड > दिवारह
५ आल
प्रत्यय से निर्मित रूप
घटाता है ।
प्रचलित रहा
=
दिलाता है ।
प्रत्यय से निर्मित रूप
जैसे, दिखालड = दिखाता है ।
मारवाडी मे 'र' के विपर्यय से 'दिरावइ' और 'लिरावई' रूप मिलते हैं, इनके मूल रूप दिवारई' और 'लिवार' है । वेलि मे
पधरावितिया वा प्रभाव (१५७) (प्रिया को बांई ओर विठाकर )
मिलता है - यह रूप 'प्रभुणई' मे 'अव' प्रत्यय से बना है । परन्तु प्रत्यययोग के पूर्व अत्य स्वर 'इ' का लोप हुआ है ।
अव > प्रभण + अव > प्रभाव
प्रभणइ+ इस प्रातिपदिक
पुरुष
और लिंग के प्रत्यय से रूप बनते है ।
यहाँ कतिपय उन रचनात्मक प्रत्ययो पर भी विचार करना प्रासंगिक होगा जो प्राकृत अपभ्रंश से प्रा० पश्चिमी राजस्थानी मे आए हैं और जो आधुनिक राजस्थानी मे भी प्रयुक्त हुए है ।
१ इलउ अपभ्रंश के
इल्लउ से सरलीकरण होकर प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे
आगिलर = आगे
पूर्विल७ = पहले का
उ
आधुनिक राजस्थानी मे 'लड' का 'लो' हो गया है, तथा 'आगलो', 'पाछ्लो' यदि रूप बनते हैं । इसी प्रकार प्रा० प० रा० के माहिल आदि से आधुनिक राजस्थानी के मायलो (भीतरी) बीचलो / विचलो (बीच का ) रूप बने है । प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी और आधुनिक राजस्थानी के रूपो मे अंतर अन्त्य 'उ' और 'ओ' का है।
अपभ्रंश अवरिल्ल से प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे 'ओरिलउ' और फिर ओलिउ वना । इसी प्रकार परिल्लड से परिलउ और पइलउ । इन्ही परिलउ से परलो' और पइल मे 'पैलो' आधुनिक राजस्थानी के रूप निष्पन्न हुए है ।
こ अलड
इसी प्रकार एक और प्रत्यय है--- अलउ, जो प्रा० प० रा मे आंधन और
एल जैनेम्पो में दिखाई पड़ता है। अपत्र ण मे भी यह - अल ५ मे ही । आधुनिक राजस्थानी के 'कॉवलो' और 'एकलो' जैसे शब्दों के साथ
मि