Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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आधुनिक युग में प्राकृत व्याकरणशास्त्र का अध्ययन-अनुसन्धान
डॉ० भागचन्द्र जैन 'भास्कर'
प्राकृत भारोपीय भापा परिवार की भारतीय आर्यशाखा की प्राचीनतम और अन्यतम भापा मानी जाती है। वैदिककाल मे वह एक जनबोली थी, जो क्रमश विकसित होती गई और पालि-प्राकृत तथा अपभ्र श के सोपानो को पार करती हुई आधुनिक आर्य भाषाओ के विविध रूपो मे प्रतिष्ठित हुई। अत भापाविज्ञान के आधार पर यह तय्य प्रस्तुत किया जा सकता है कि वर्तमान जनबोलियो का सीधा सम्बन्ध पालि-प्राकृत भापाओ से अधिक है। उनका परिनिष्ठित रूप भले ही सस्कृत के परिसर मे उपलब्ध हो सकता है। ___सदियो से प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के सन्दर्भ मे विवाद के स्वर,गू जते रहे हैं । प्राकृत और सस्कृत इन दोनो भाषाओ मे प्राचीनतर, तथा मूल भाषा कौनसी है ? इस प्रश्न के समाधान मे दो पक्ष प्रस्तुत किए गए है। प्रथम पक्ष का कथन है कि प्राकृत की उत्पत्ति सस्कृत से हुई है तथा दूसरा पक्ष उसका सम्बन्ध किसी प्राचीन जनभाषा से स्थापित करता है । प्राकृत व्याकरण-शास्त्र मे दोनो पक्षो का विश्लेषण इस प्रकार मिलता है -
१ प्रथम पक्ष
(1) प्रकृति संस्कृतम् । तत्र भव तत आगत वा प्राकृतम् -हेमचन्द्र । ' (11) प्रकृति सस्कृतम्, तत्र भव प्राकृतम् उच्यते मार्कण्डेय । । (iii) प्रकृते सस्कृताया तु विकृति प्राकृती मता नरसिंह। (iv) प्राकृतस्य तु सर्वमेव सस्कृत योनि वासुदेव । (v) प्राकृते आगतम् प्राकृतम् । प्रकृति संस्कृतम् धनिक । । (vi) मस्कृतात प्राकृत श्रेष्ठ ततोऽपभ्र शभापणम् शकर । (vii) प्रकृते सस्कृताद् आगत प्राकृतम् - सिंहदेवगणिन् । '