Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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३१२ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण बोर कोश की परम्परा
___ उपर्युक्त उदाहरण मे वागहीन कर्ता एक वचन है, इसके साथ कर्ताकारक की विभक्ति नही है। २ राजति एक भीखमक राजा
सिरहर अहि नर असुर सुर (छद-१०) इसमे भी कर्ता 'भीखमक राजा' कतकारक विभक्ति रहित है । कर्मकारक मे भी यही स्थिति है
१ पेखि रुखमणी जल प्रसन (८-१३२) २ वेलखि अणी मूठि द्रितिवन्धि (छद-१३१) ३ केस उतारि विरूप कियो (७८-१३४) ४ करै भगति राजान किसन ची (छद-१४६) ढोलामारू रा दूहा मे भी विभक्तिरहित कर्ता और कर्म के प्रयोग मिलते हैं
___ कूड़ियाँ कलख कियउ (दोहा-५४)
उपर्युक्त उदाहरण मे 'कूझडिया' और 'कलख' क्रमश कर्ता और कर्म मे प्रयुक्त हैं परन्तु इनमे इन कारको की विभक्तियाँ नही है । परन्तु 'ढोला मारू रा दूहा' मे ही कर्ताकारक मे अपभ्रंश का 'उ' भी मिलता है
जोवण आँव फलि रह्यउ (दोह। ११७) कर्मकारक मे भी यह 'उ' प्रयुक्त हुआ है
ढाढी एक सदेशडउ ढोलइ लगि लइ जाई (दोहा-१२१) भविष्यकाल के प्रयोगो मे का विभक्ति रहित भी है
जोवण वधन तोडसाइ इससे यह स्पष्ट होता है कि 'ढोलामारू रा दूहा' मे 'उ' विभक्ति और शून्य विभक्ति वाले दोनो रूप प्रयुक्त हुए हैं । 'वेलि' मे केवल शून्य विभक्ति वाले रूप । अपभ्रश मे जहा प्रातिपदिक के अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'उ' होता था, 'ढोला मारू रा दूहा' की भाषा मे प्रातिपादिक के साथ 'उ' पृथक् से जोडा गया है आँवउ, સસડક માદ્રિ
परन्तु उन्नीसवी शताब्दी की 'वीर सतसई' मे कता और कर्म विभक्ति रहित ही हैं
१ धणिया पग लूवी धरा, अवखी ही घर आय (दोहा-३२) । 'धरा' स्त्रीलिंग है और विभक्तिरहित भी।
२. तियां धरीज चाव (दोहा-३३) । 'तियाँ' बहुवचन स्त्रीलिंग है, विभक्ति यहाँ भी नहीं है।
३ एय घराण सोहणी कवर जण सो काल उपर्युक्त उदाहरण मे कर्ता और कर्म दोनो मे शून्य विभक्ति है।