Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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प्राकृत-अपभ्रश का राजस्थानी भाषा पर प्रभाव ३२१
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३ वीर धणी री धान
वीर स्वामी का अन्न ४ डाकी ठाकर रौ रिजक, ताखा रौ विष एक जबरदस्त स्वामी का रिजक और तक्षक का वि५ । रौ (, १२)
एक है ५. निज भगा तो नाह रौ, साथ न सूनो टाल । रौ ६ पण वण रौ किम पेखही, नयण विणला नाह ७ भड घोडा रा भामणा जेथ जुडीज कत । रा (., २०) ८ मिजमानी री वार ६ वीर जमी। जे जण १० सतियाँ आयो साथ
___ सतियां साथ =सतियो का समूह ११ धणियाँ पग लूवी धरा
धणियो के परो से लटकती धरती १२ वाजा रे सिर चेतना, भ्रूणा कवण सिखाय ।रै (, ५१) १३ घोडा घर ढाला पटल, भाला थभ वणाय । ऑ १४ कोसा चा सण ढोलडा ॐ नीद विछोड ।चा १५ घणी रे रुण्ड
(धणी का शरीर) १६ वव सुणीज पार को, लीज हात लगाम १८ आपा रा मिजमान १८ पहर धणी चा पुगरण धनी के वस्त्र पहनकर
|चा (, १०६ १६ पीत खटक्क मास चौ २० जोडी हदा घोर जम, रोडी हदा राव हदा (पजावी) =
का (, १७७) उपर्युक्त उदाहरणो के परीक्षण से ज्ञात होगा कि अपभ्र श से प्रभावित 'आँ' वाले सबंधकारकीय रूप उन्नीसवी शताब्दी की सतसई मे अत्यल्प है । 'हदा' परसर्ग तो एक दोहे मे आया है। अधिकाश प्रयोगो मे 'रौ' परसर्ग का ही प्रयोग हुआ है। 'रौ' वचन और लिंग से प्रभावित होता है, परिणामत रो, री, रा, तीनो रूप चलते हैं। इस समय तक अपभ्रश का प्रभाव इस सदर्भ मे बहुत कम रह गया है। सवधकारकीय परसर्ग 'को' भी प्रयुक्त हुआ है। आधुनिक राजस्थानी मे 'का', को', की जैसे, 'कुण को वेटो', 'कुण का बेटा', 'कुण की बेटी' प्रयोग होते है। रा, रौ तो बहु प्रयुक्त है ही। आधुनिक राजस्थानी के कतिपय उदाहरण यहा दिए जा रहे है।
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