Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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३०४ मस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
को आवारभूत सामग्री के २५ मे ग्रहण करना समुचित है। विकास के ऐतिहासिक स्वर५ को ध्वनि (उच्चारण), १५, वाक्य और शब्दसमूह की दृष्टि से परखा जा सकता है। प्रस्तुत निबध मे 'ध्वनि' और 'र५' को ही आधार बनाया गया है। 'ध्वनि' मे भी उन परिवर्तनो को दिखलाना अभिप्रेत है, जो प्राकृत-अपभ्र श से राजस्थानी मे किचित् अतर के माथ आए हैं, अथवा वैसे ही प्रयुक्त हो रहे हैं। उपारण पर विचार नहीं किया जा रहा है। स्पज्ञानिक विकास में सभी समव आयामो का आध्यान करना उचित होगा। भारत के पश्चिमी प्रदेश की जन-मापा शौरसेनी अपभ्र श से विकसित राजस्थानी रूपात्मक दृष्टि से कितने विकास स्तरो से गुजरी यह स्वय में महत्त्वपूर्ण शोध का विषय है। पिंगल अपभ्र श प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी का स्रोत नहीं है । उसमें अनेक तत्व ऐसे है जो पूर्वी राजस्थानी वोलियो की विशेषता है। प्रस्तुत निवध का उद्देश्य प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी से विकसित माध्यमिक राजस्थानी और फिर आधुनिक राजस्थानी मे दिखलाई पडने वाले प्राकृत-अपभ्रश के प्रभाव की रूपरेखा प्रस्तुत करना है ।
(क) ध्वनि विवेचन राजस्थानी की ध्वनि-व्यवस्था वही है जो प्रा प राजस्थानी मे थी और प्रा प रा में वह अपभ्र श से आई थी। टेसीटोरी ने प्रा प राजस्थानी मे 'ळ' ध्वनि की समावना व्यक्त की है । सभावना इसलिये कि पाडुलिपियो मे उन्हें इसके लिए पृथक से चिह्न नहीं मिला। परन्तु जो भी हो माध्यमिक राज की कृति 'वेलि क्रिमन रुकमणी री', आधुनिक राजस्थानी की सतसई, वादली आदि मे यह ध्वनि है और इसे 'ल' चित्त द्वारा प्रकट किया जाता है। ल और/ल/ दो स्वनिम है। इनके अल्पतम युग दल और दल है। प्रयम का अर्थ समूह और द्वितीय का दलना, कुचलना आदि है।
अपभ्रण का 'अ' प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे सुरक्षित रहा परन्तु जहा आद्य अथवा मध्य 'अ' के पूर्व या पश्चात दीर्घ स्वर वाला अक्षर हो तो अ> इ हो जाता है, पिशेल के अनुसार प्राकृत मे ऐसा नहीं होता। प्रा प रा के कतिपय उदाहरण ये हैं
अण्डकम् > अप० अण्डउँ > इंडउँ (आदिनाथ चरित्र)
__ कपाट>, कवाड>किमाड( , , ) मारवाडी मे अइहोता है । 'किमाड' को प्रयोग भी लोकभाषा है और अपभ्र श की प्रवृत्ति के अनुसार 'hais' भी प्रचलित है 'कांड दे द्यो' और किमाड लगायो' दोनो प्रयोग चलते हैं । 'कवाड' अपभ्र श के प्रभाव स्वरूप ही है। इसी प्रकार 'गिमार' (गवार) शब्द भी है।