Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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प्राकृत व्याकरण का अनुसन्धान २५७
भाषा और साहित्य' नामक ग्रन्थ पालि- प्राकृत और अपभ्रंश के अध्ययन के लिए उपयोगी है। इसका प्रकाशन इसी वर्ष नागपुर विश्वविद्यालय से हुआ है । डा० कोमल जैन ने भी वूलर के आधार पर एक प्राकृत प्रवेशिका का (वाराणसी, १९६४) प्रकाशन किया था ।
ये सभी ग्रन्थ आधुनिक भाषाओ मे प्राकृत व्याकरणो पर उपलब्ध हैं। छोटेमोटे कुछ और भी ग्रथ लिखे गए है, जिन्होने प्राकृत भाषा के अध्ययन को प्रोत्साहित किया ।
३ प्राकृत भाषात्मक चिन्तन
पिछले कुछ वर्षो मे प्राकृत ग्रन्थो का आधुनिक दृष्टि से सपादन- प्रकाशन हुआ है । उनमे सपादको ने ग्रन्थो की भाषा पर विचार किया है। इसी प्रकार कुछ फुटकर निवन्ध भी प्रकाशित हुए हैं । ये सभी यद्यपि स्वतन्त्र ग्रन्थ नही है, फिर भी भाषान्तर चिन्तन की दृष्टि से उनका मूल्याकन अवश्य किया जा सकता है ।
एम० शाहीदुल्ला का 'Magadhi Prakrit and Bengali ( IHQ 1925) डा० घाटगे के Instrumental and Locative in Ardhamagadhi (IHQ. 1937), Locative form in Paumacariya (BBRAS 1957) और Maharashtri language and literature (JBU 1936 ) तथा डा० PV वापट
The Relation between Pali and Ardhamagadhi (IHQ Vol. VI 1928) निबन्ध मागधी, अर्धमागधी और महाराष्ट्री प्राकृत से सबद्ध है ।
एस० पी० व्ही. रंगनाथ स्वामी का Paisacı Prakrit ( 1A, XLVIII, 1919, pp 211-213) PV रामानुज स्वामी का Hemachandra and Paisacı Prakrit (1A L1, 1922 pp 51-54), ए० एन० उपाध्ये Paisacr Language and literature ( Annals of the B ORI XX11–2, pp 1-37, Poona, 1940), आदि निवन्ध पैशाची प्राकृत की विभिन्न समस्याओ को उद्घाटित करते है ।
इसी प्रकार के कुछ अन्य निबन्ध भी उल्लेखनीय हैं । डा० के० बी० पाठक का The text of the Jainendra Vyakarana and the Priority of Candra to Pujyapada (ABORI, Vol XIII, 1931-32, pp 25-36 ), डा० ए० एन उपाध्ये के Jounder and his Apabhramsa works (ABORI, Vol XII, 2PP 132-168, Poona, 1931), Subhachandra and his Prakrit grammar, (ABORI, Vol XIII, 1931-32, pp 37-58) The Prakrit Dialect of Pravacanasara of jaina Sauraseni (JUB II, 6, Bombay, May, 1934), Prakrit studies their latest progress and future (AIOC, हैदराबाद, 1941 मे दिये गए भाषण का