Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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२४६ : सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
मिद्धान्तो की भीमासा की है। कही वे उनसे सहमत भी नहीं हो सके । कही उन्होंने अकथ्य की भापा को कथ्य भी बना दिया । अर्धमागधी, महाराष्ट्री आदि के अतिरिक्त ढक्की, दाक्षिणात्या, आवन्ती और जैन शौरसेनी जैसी प्राकृत बोलियो पर पिशल ने विलकुल नई सामग्री प्रस्तुत की है।
त्रिविक्रम के शब्दानुशासन के आधार पर सिंहराज ने प्राकृत रूपावतार लिखा जिसका प्रथम सम्पादन E Hultzsch ने किया और प्रकाशन रायल एशियाटिक सोसाइटी, Hertford से १६०६ मे हुआ। सम्पादक ने इसकी भूमिका मे लेखक के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है।
३. प्राकृत भाषाओ पर आधुनिक भाषाओ में लिखे गये व्याकरण ____ उपयुक्त व्याकरणो के आधार पर विदेशी विद्वानो ने अनेक व्याकरण ग्रन्थ लिखे। उनमे से कतिपय कार्यों का उल्लेख हम प्राकृत भाषाविज्ञान के सन्दर्भ मे कर चुके हैं। पाश्चात्य विद्वानो मे स्वतन्त्र रूप से सर्वप्रथम व्याकरण लिखने वालो मे Hoeffar को नाम उल्लेखनीय है जिन्होने अपना ग्रन्थ De Prakrita Dialects Librio Duo १८३६ मे पालन से प्रकाशित किया था। लगभग उसी समय १५३७ मे Cl Lassen का Institutions Linguae Pracritieae नामक प्राकृत व्याकरण का ग्रन्थ Bonnae से प्रकाशित हुआ। ये अन्य सर्वसाधारण पाठको को अच्छी सामग्री प्रस्तुत करते है। इसी प्रकार R Pischel
? De Grammaticis Pracriticis (Vratıslaciae, 1874', E Muller dit Beitrage Zur Grammatik des Jaina Prakrit (Berlin, 1876), S Goldschmidt 61 Prakritiea (Strassburg, 1879, Zeitschrift der deutschen morgendischen Gesellschaft, Vol XXXII, pp. 99112, Vol XXXVII, pp 457-458, Leipzig, 1878-1883), H Jacobi 41 Das guantitatsgestz in den Prakritsprachen (Kuhn's Zeitschrift fur vergleichende Sprachforschung, Vol. XXXV, pp 292298, Berlin, 1881), R F Pavolini 47 Le Novello Prakrit de Mandia edi Aglaladatta (Rome, 1872), Alfred C Woolner ! Introduction to Prakrit (Lahore, 1917), Sir George Abraham Grierson का Prakrit Dhatvadesase(AS B, Calcutta, 1924) आदि और भी प्राकृत व्याकरण हैं, जो प्राकृत भापाओ के अध्येता के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
यहा Woolner का ग्रन्थ Introduction to Prakrit विशेष उल्लेखनीय है। इसे दो भागो मे विभक्त किया गया है। प्रथम भाग मे ग्यारह अध्याय है जिनमे विभिन्न प्राकृतो के सामान्य रूप से तुलनात्मक नियम दिये गये हैं और