Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
View full book text
________________
२४२ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
प्रकाशित किया। इसमे उन्होने प्राकृत भाषाओ का भाषाविज्ञान की दृष्टि से विशेष अध्ययन किया और सस्कृत को उसका मूल उद्गम सिद्ध करने का प्रयत्न किया । J Beames ने भी Outlines of Indian Philology (द्वितीय मस्करण, १८६८) मे गोरसेनी से कुछ उदाहरण देकर यही निष्कर्ष निकाला । इसके बाद G Goldschamidt ने Bildungen aus Passive Stammen in Prakrit (Seitscrhift, der deutschen morgenlanelischen Gesellschrift Vol. XXIX, PP. 491-495, Vol XXX, P. 779 Leipzig, 1875-1876) 791 Der infininitive des passive in Prakrit, ZDMG, Vol XXVIII, P,491-493, Leipzig, 1874) मे प्राकृत के कर्मवाच्य पर विशेष अध्ययन प्रस्तुत किया।
E Muller ने आर्य भापाओ के विकास में प्राकृत भाषाओ का महत्व प्रदशित करते हुए प्राकृत की रूपिम विशेषताओ को उपस्थित किया। (Beitrage, Zer Grammatik des Jaina Prakrit, Berlin, 1876) A. F Rudolf, Hoernle 41 A Sketch of the History of Prakrit Philology (CR. LXXI, Art. 7, 1880) नामक अन्य भी इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है । इसी बीच Wilson ने बबई विश्वविद्यालय मे भाषाविज्ञान पर कुछ भाषण दिए, जिनमे उन्होने सस्कृत भाषा के विकास को स्पष्ट करते हुए प्राकृत और आधुनिक भापाओ की सरचना पर प्रकाश डाला। John Beams ने १८७२ से १८७९ के वीच कुछ भाग प्रकाशित किए, जिनमे उन्होने आर्य भाषाओ की विकासात्मक स्थिति को स्पष्ट करते हुए उन पर प्राकृत भाषाओ के प्रभाव को परिलक्षित किया।
H Jacobi Uber Unregelmassige Passive in Prakrit, (Kuhne's Zeitschift fur deutcshen morgenlandischen cesellschaft, Vol XXXIII, P 249-259, Gutersloh, 1887) तथा Uber das Prakrit in der Erzahlungs – Literatur der Jainas (Rivista degli studi Orientali, Vol II PP 231-236, Roma, 1908-1909) भी यहा उल्लेखनीय हैं, जिनमे उन्होने प्राकृत की विभिन्न विशेषताओ को भाषाविज्ञान के क्षेत्र मे अध्ययन का विषय बनाया। हरिभद्रमूरि की सम राइ कहा तथा विमलसूरि के पउमचरिय के अध्ययन के आधार पर यह निश्चित करने का प्रयत्न किया कि जैन महाराष्ट्री प्राकृत के गद्य और पद्य साहित्य की विशेषताए पृथक-पृथक हैं। ____R Pischel ने 1900 मे Strassburg से Grammatik der Prakrit sprachen (Grundriss der indo-arischen Philologie un Altertums Kunde, Band I, Heft 8) प्रकाशित कर भापावैज्ञानिको को प्राकृत