Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
View full book text
________________
आप प्राकृत स्वरूप एव विश्लेषण २३३
ही मानते हे |" अनुयोगद्वार के चूर्णिकार ने इसी के लिए शब्दप्राभृत और पूर्व के अन्तर्गत व्याकरण का निर्देश किया है ।
आप प्राकृत का वैदिक व्याकरण से साम्य पाया जाता है ।" इससे भी यह प्रमाणित होता है कि उसके नियम प्राचीन व्याकरणो से सबद्ध है ।
अनुयोगद्वार मे लिंगानुशासन के नियम भी मिलते है पुल्लिंग राया, गिरि, सिहरी, विण्हू, दुमो । स्त्रीलिंग - माला, सिरी, लच्छी, जवू, बहू | नपुसलिंग धन्न, अस्थि, पीलु, महु ।
प्रज्ञापना मे लिंग-विपयक निर्देश अनुयोगद्वार से अधिक विशद मिलते है - १२ पुल्लिंग मणुस्से, महिसे, आसे, हत्थी, सीहे, वग्धे, वगे, दीविए, अच्छे, तरछे, परम्स रे, सियाले विराले, सुणए, कोलसुणए, कोक्कतिए, ससए, चित्त, चिल्ललए । "
स्त्रीलिंग मणुस्सी, महिसी, बलवा, हत्थिणिया, सीही, वग्धी, वगी, दीविया, अच्छी, तरच्छी, परस्सरा, सियाली, विराली, सुणिया, कोलसुणिया, कोक्कतिया, ससिया, चितिया, चिल्ललिया ३५
नपुंसकलिंग -- कम, कमोय, परिमंडल, सेल, थूम, जाल, थाल, तार, रूव, अच्छि, पव्र्व, कुड, परम, दु, दहि, णवणीय, आसण, सयण, भवण, विमाण, छत्त, चामर, भिंगार, अगण, निरंगण आभरण, रयण । १६
'पुढवी' यह स्त्रीलिंग है । 'आउ' यह पुल्लिंग है । 'धण्ण' यह नपुसकलिंग है।" प्राकृत में लिंग का विधान इतना नियंत्रित नही है जितना संस्कृत मे है । 'आई' का संस्कृत रूप 'अप्' होता है । संस्कृत मे यह स्त्रीलिंगवाची शब्द है और प्राकृत मे पुल्लिंगवाची । प्राकृत का प्रसिद्ध सूत्र है लिंगमतन्त्रम् ।'
प्रज्ञापना मे सोलह प्रकार के वचनो मे एकवचन द्विवचन और बहुवचन - इन तीनो का निर्देश है ।" यह निर्देश मस्कृत-व्याकरणानुसारी प्रतीत होता है । प्राकृत व्याकरण के सदर्भ मे एक वचन और बहुवचन ये दो ही निर्देश मिलते है मणुस्से, महिसे यह एकवचन है ।" मणुस्सा महिसा यह वहुवचन है । इस प्रसग मे द्विवचन का उल्लेख नही है । द्विवचन को बहुवचन का आदेश" इसलिए करना पड़ा कि उन्होने संस्कृत को प्राकृत की प्रकृति मान लिया । किन्तु जो आचार्य जनभाषा को प्राकृत की प्रकृति मानते हैं, उनके सामने द्विवचन को बहुवचन का आदेश करने का प्रश्न ही उपस्थित नही होता ।
वर्णमाला
प्राकृत भाषा के साथ ब्राह्मी लिपि का घनिष्ठ सवध रहा है । समवाय सूत्र मे उसकी वर्णमाला के ४६ अक्षर बतलाए गए है ।" उनका स्पष्टीकरण वहा