Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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आप प्राकृत स्वरूप एव विश्लेषण २३१
(ख) इतरेतरयोग मिलित व्यक्तियो या वस्तुओ का संबंध । (ग) समुच्चय शब्दो या वाक्यो का प्रयोग। (घ) अन्वाचय 'मुख्य काम या विषय साथ मे गौण काम का विषय
जोडकर । (ड) अवधारण--निश्चय। (च) पादपूरण । २ मकार अनुयोग इस अनुयोग के द्वारा मकार का विधान किया गया है। यह समस्त और असमस्त पदो मे होता है।
जेणा- एव = जेणामेव, तेणा+एव =णामेव । प्राकृत व्याकरण के अनुसार इनके जेणेव' 'तेणेव' रूप बनते है । 'छदनिरोहेण उवेइ मोक्ख' (उत्त० ४।८) यहां समस्त पद मे अनुस्वार किया गया है । 'अन्नमन्नण' (उत्त० १३।७) यहाँ भी मकार विहित है।
३ पिंकार अनुयोग – 'अपि' शब्द के अनेक अर्थ है, जैसे सभावना, निवृत्ति, अपेक्षा, समुपय, नहीं, शिष्यामर्षण, विचार, अलकार तथा प्रश्न । 'एवपि एगे आसासे' यहां अपि का प्रयोग ऐसे भी' और 'अन्यथा भी' इन दो प्रकारान्तो का समु-44 करता है।
४ सेयकार अनुयोग 'से' शब्द के अनेक अर्थ हैं--- अथ, वह, उसका आदि। से भिक्खू'- यहाँ 'से' का अर्थ 'अथ' है । 'न से चाइत्ति .ई' । यहाँ से का अर्थ यह (वे) है । अथवा 'सेय' शब्द के अनेक अर्थ है। श्रेयस्, भविष्यत्काल आदि। सेय मे अहिज्जिउ अज्झयण यहाँ सेय' शब्द श्रेयस् के अर्थ मे प्रयुक्त है । 'सेयकाले अकम्म यावि भवई' यहाँ सेय' भविष्यत काल का द्योतक है । डॉ० पिशल ने 'सकार' की विशद मीमांसा की है । देखेंप्राकृत भाषाओ का व्याकरण पृ० ६२२-२५।
५ सायकार अनुयोग साय शब्द के अनेक अर्थ है सत्य, सद्भाव, प्रश्न आदि।
६ एकत्व अनुयोग बहुवचन के स्थान पर एक वचन का प्रयोग । 'एस मगुत्ति पन्नत्तो' (उत्त० २८।२) यहाँ 'मग' शब्द एकवचन का प्रयोग है, जबकि यहां बहुवचन होना चाहिए था। । ७ पृथक्त्व अनुयोग जैसे धम्मत्यिकाये, धम्मस्थिकायदेसे, धम्मत्थिकायपदेसा । यहाँ 'धम्मत्यिकीयपदेसा' - इनमें दो के लिए बहुवचन नही है किन्तु धर्मास्तिकाय के प्रदेशो का असख्यत्व बतलाने के लिए है। । ।
८ सयूथ अनुयोग 'सम्मत्तदसणसुद्ध' इस समस्त पद का विग्रह अनेक प्रकार से किया जा सकता है, जैसे
। । । । । । । (क) सम्यग्दर्शन के द्वारा शुद्ध (तृतीया)