Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
View full book text
________________
२३२ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
(ख) सम्यग्दर्शन के लिए शुद्ध (चतुर्थी)
(ग) , से शुद्ध (पचमी) ६ सक्रामित अनुयोग इसके अनुसार विभक्ति और वचन का सक्रम होता है।
विभक्ति संक्रमण • इसिं छह जीवनिकायाण (दस० ४ २)
यहाँ सप्तमी के अर्थ मे पष्ठी विभक्ति है। • वीएसु हरिएसु (दस० ५।१।५७)
यहां तृतीया के अर्थ मे सप्तमी विभक्ति है। • भोगेसु (दस ० ८।३४)
यहाँ पचमी के अर्थ मे सप्तमी विभक्ति है। • अदीण मणसो (उ० २।३)
यहाँ प्रयमा के अर्थ मे षष्ठी विभक्ति है। • कडाण कमाण (वत्त०१३।१०) यहां पंचमी के अर्थ मे पष्ठी विभक्ति है।
वचन संक्रमण • मन्ने (दस ६।१८)
यहाँ बहुवचन के स्थान पर एक वचन है । • से दसगेऽभिजायई (उत्त० ३।१६)
यहाँ बहुवचन के स्थान पर एकवचन है। • उच्चार समिईसु (उत्त० १२।२) __यहाँ एकवचन के स्थान पर बहुवचन है।
१० भिन्न अनुयो। जैसे 'तिविह तिविहेण' यह सग्रह-वाक्य है। इसमे (१) मणेण वायाए कायेण तथा (२) न करेमि, न कारवे मि, करतपि मन्न न भमणुजागामि इन दो खडों का संग्रह किया गया है। द्वितीय ख७ नकमि
आदि तीन वाक्यो में 'तिविह' का स्पष्टीकरण है और प्रथम खड मण' आदि तीन पाचागो मे 'तिविहण' का स्पष्टीकरण है। यहाँ 'न करेमि' आदि वाद में है और नणण' आदि पहने । यह कम भेद है । कालभेद - 'सक्के देविदे देवराया वदति नममति'- यहा अतीत के अर्थ मे वर्तमान की जिन्या का प्रयोग है।। ___ अनुयोगद्वार मे आ० वित्तिया पत्तलाई गई है। उनमे आठवी का नाम
आमन्त्रणी है । वृत्तिकार ने न पर टिप्पणी करते हुए लिखा है इस आठवी विपनि का आधार प्राचीन वैयाकरण है । आधुनिक वैयाकरण मे प्रथमा विभक्ति