Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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१८८ सन्कृत-प्राकृत व्याकरण और कांग की परम्परा
किया गया है। उसके अनुसार गाई चार अध्याय के प्रति ढाईपाद के सूत्रो को अमिद किया गया है। ___ भिक्षुशब्दानुशासन के रचयिता के सामने पाणिनीय, शाकटायन जनेन्द्र, हम, सारस्वत, कातन्त्र मादि विभिन्न व्याकरण थे। इन सबो के गभीर मन्यन और
आलोडन के बाद बडी सूक्ष्मेक्षिका से इन शब्दानुशासन का निर्माण किया गया। इसके पूर्ववर्ती व्याकरणो की जटिलता तया काठिन्य सानुभूत है। इसे दूर करने पा। इसमें सफल प्रयास किया गया है। बाध्य वाधक भाव जो व्याकरणशास्त्र का महत्त्वपूर्ण जग है उसका समावेश बडी कुशलता से न्याय के भीतर किया 141 है। यहा का न्याय दर्पण विषयवाहुल्य की दृष्टि से बहुत ही व्यापक है। इसक બીતર સારે વાધ્ય ધમાવ નિયમ નિયમરિત્વ' ત્યાદ્ધિ સારે વિષયો ! एकल समावेश कर दिया गया है।
प्रयोगो की सिद्धि मे भिक्षुशब्दानुशासन शाकटायन के निकट पड़ता है। एक उदाहरण द्वारा इस बात को स्प८८ किया जाता है
"युप्माकम्" प्रयोग की सिद्धि के लिये 'पाणिनि' का "साम आकम्" सूत्र है। युध्मद | आम्" इस स्थिति में अवर्ण से पर मे न होने के कारण आम् प्रत्यय को मुटु नही हो सकता। यदि कहा जाय कि देकार की लो५ करके नाम को अवर्ण से पर मे किया जा सकता है तो यह कहना भी ठीक नहीं है क्योकि आकम् आदेश के पहले अनादेश अजादि प्रत्यय होने के कारण दकार का लोप नही हो सकता। इसलिये पाणिनि परम्परा मे 'आम्' को ही 'साम्' मान कर माकम् कर दिया जाता हैं। इस प्रकार माकम् करने का प्रभाव यह होता है कि स्थानिवद्भाव से माकम् को आम नही माना गया। अन्यथा आकम् मे थाम् बुद्धि करके पीछे से सुट होने ના નાતા ! બત ભાવિન લુટો નિવૃત્ય સસુનિલ”સા હા મયા પાનિ को इस बात का जनेन्द्र पर पूर्ण प्रभाव है। यहाँ मी "साम आकम्” भून ययावत् गृहीत है। इस सूत्र की वृत्ति मे अभयनन्दी लिखते है "भाविन सुट भूतवदुपादाय साम इति निदश कृत । आकमि कृते सुट् निवृत्यर्य"। इससे स्पष्ट है कि जनेन्द्र अपेक्षा कृत सरल अवश्य है पर पाणिनि द्वारा प्रदर्शित पय ही इनका गन्तव्य है।
शाकटायन ने यहा कुछ नवीनता अवश्य की है। युष्माकम् वनाने के लिये इनका सूत्र है "युष्मदस्मद्भ्यामाकम्" ११२।१७७ । इस सूत्र से युष्मद् के आगे रहने वाले 'साम्' को सीधे 'साकम्' मादेश कर दिया गया है । आकम् अदिश करने के बाद "दो लुक" १।२।१८१ सूत्र से दकार का लोप हो जाने पर "सामाम" १।२।१७६ मून से माकम् को आम समझकर साम् आदेश क्यो नही होता । इसका उत्तर शाकटायन के यहा अन्वेपणीय है। -
કામ્ નો લાવ ને જ પ્રેરણા fમજૂશબ્દાનુશાસન બાદાયન સે મિની है। इसका मूत्र "आम माकम्” २१११५३ है। इससे आकम करने के उपरान्त या