Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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१९४ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोग की परम्परा अर्धमागधी, महाराष्ट्री, शौरसेनी, पैशाची, अपभ्रश आदि नाम प्राकृत भाषा के विकास के परिचायक है।
प्राकृत भाषा के अनेक तत्व वैदिक मस्कृत में उपलब्ध होते है। लौकिक सस्कृत भी यत्र-तन्न उससे प्रभावित है। उसी प्रकार प्राकृत मे भी सस्कृत भाषा के
दो को तत्सम और तद्भव ५ मे ग्रहण किया है। प्राकृत वैयाकरणो ने 34 प्रकार के शब्दो का शामन किया है। प्राकृत मे कुछ ऐसे शब्दो का भी प्रयोग हुआ है, जिनका अर्थ ९८ हो गया है तथा जिनकी कोई व्युत्पत्ति नहीं हो सकती। ऐसे ५०५ देश्य या देशी कहे गये है, जो जनसाधारण की वोलचाल की भाषा मे सम्मिलित होते रहते है। इस तरह प्राकृत भाषा का व्याकरण प्रस्तुत करना उतना सरल नही था, जितना मस्कृत का। अत संस्कृत को आधार मानकर प्राकृत व्याकरण का प्रारम्भ किया गया है। ___प्राकृत भापा के वैयाकरणो ने इस भापा की प्रकृति सस्कृत को माना तथा उससे उत्पन्न होने वाली भाषा को उन्होने प्राकृत कहा है 'प्रकृति मस्कृतम् तत्रभव प्राकृत उच्यते' इत्यादि । संस्कृत के कुछ अलकारिको ने भी यही मत प्रगट किया है। किन्तु इन सबने 'प्रकृति' का अर्थ मस्कृत भाषा करके भ्रान्ति की है। प्राकृत को 'प्रकृति' शब्द से उत्पन्न मानना और उसे संस्कृत से जोडना ठीक नहीं है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी यह सही नहीं है। इस विषय पर पर्याप्त लिखा जा चुका है। मत अवविद्वान् इस मत से सहमत होने लगे हैं कि प्राकृत स्वतन्त्र रूप से विकसित भाषा है, सस्कृत का विगडा हुआ रूप नही।
प्राचीन ग्रन्यो मे प्राकृत (पाइय, पागय) शब्द का कई वार प्रयोग हुआ है। किन्तु रुद्रकृत काव्यालकार के टीकाकार नमि साधु ने प्राकृत शब्द को सुन्दर और सटीक व्याख्या की है। उनके अनुसार 'प्राकृत' शब्द का अर्थ है व्याकरण आदि सस्कारों से रहित लोगो का स्वाभाविक वचन-व्यापार । उससे उत्पन्न अथवा वही वचन-व्यापार प्राकृत है। 'प्राक् + कृत' पद से प्राकृत शब्द वना है, जिसका अर्थ है पहले किया गया। जन धर्म के द्वादशाग ग्रन्थो मे ग्यारह अग अन्य पहले किये गये हैं अत उनकी भाषा प्राकृत है। यह भापा वालक, महिला आदि सभी को सुवोच है। इसी प्राकृत के देश भेद एव क्रमश मस्कारित होने से अवान्तर विभेद हुए है। प्राकृत वयाकरणो ने विभिन्न प्रकार की प्राकृतो का अनुशासन किया है। किन्तु सामान्य रूप से प्राकृत शब्द की व्युत्पत्ति करते समय 'प्रकृत्या स्वभावेन सिद्ध प्राकृतम्' अथवा 'प्रकृतीना साधारण जनानामिद प्राकृतम्' अर्य को स्वीकार करनी चाहिए। इस तरह जन-सामान्य की स्वाभाविक भापा प्राकृत है।
प्राकृत भाषा मे केवल जनागम ही नहीं लिखे गये, अपितु ईसा की प्रथम ताब्दी मे स्वतन्त्र काव्य ग्रन्यो की रचना भी प्राकृत मे होने लगी थी। आगमो की भापा जहा अर्धमागधी है, वहा दिगम्बर आगम शौरसेनी प्राकृत मे लिखे गये