Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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१७८ . संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
तन्द्राति
१ तन्द्रा आलस्ये २. निद्रा शयने निद्राति
3 कक्व कर्कहासे कक्वति
मर्कति
४ मर्कस् पृच्छने પ્રાત્ બાવાને નર્તાત
इस प्रकार अनेक धातु है, जो भिक्षुशब्दानुशासन के अपूर्व धातु हैं । વિધાનુશાસન સ દ્રાનુળાસન મૂળ હસ્તલેદ્ય મેં લાાનુગાસન નહી हैं । किन्तु श्लोकबद्ध इसका लिंगानुशासन बना हुआ है। ऐसा विदित हुआ है । इन सभी वातो के अतिरिक्त यहां का न्यायदर्पण एक महत्त्वपूर्ण वस्तु है । इन न्यायो के द्वारा मदिग्ध अर्थ को एक निश्चित रूप दिया जाता है । पाणिनि परम्परा मे इस प्रकार के कार्य परिभाषाओ के द्वारा सम्पन्न किये गये है । "अनियमे नियम कारिणी परिभाषा" इस व्युत्पत्ति के आधार पर परिभाषाओं से भी वे ही कार्य किये जाते है, जो न्यायो से किये जाते हैं । पाणिनि व्याकरण मे दो प्रकार की परिभाषाये उपलब्ध होती है । एक तो सूत्र रूप मे पढ़ी गई परिभापायें, जैसे "डको गुणवृद्धी" "स्यानेऽन्तरतम " इत्यादि । दूसरे प्रकार की परिभाषाये वे हैं, जो सूत्रकार के द्वारा पढी तो नही गई है, पर उनसे अभिमत है । ऐसी परिमापायें सूत्रो से अथवा सूत्रों के अशो से ज्ञापित की जाती हैं। ऐसी परिभाषाओं के आधार पर निर्मित पाणिनि सम्प्रदाय मे परिमाषेन्द्रशेखर नामक एक विशिष्ट ग्रन्थ है ।
भिक्षुशब्दानुशासन मे भी दो प्रकार की परिभापाये उपलब्ध होती हैं । एक तो सूत्रकार के द्वारा सूत्र रूप मे पठी गई है, जैसे "शिदनेकवर्ण सर्वस्य" ८४१२४ जो कार्य शित् रूप हो या अनेक वर्णों वाला हो, वह सम्पूर्ण के स्थान पर होता है ।
पण्ठ्यान्त्यस्य ८|४|१२३ पष्ठी निर्दिष्ट कार्य अन्तिम वर्ण के स्थान पर होता है । यद्यपि इन्हे सूत्रकार ने परिभाषा नाम नही दिया है तथापि इनके द्वारा वे ही कार्य होते हैं, जो परिभाषाओं से किये जाते हैं |
भिक्षुशब्दानुशासन मे दूसरे प्रकार की परिभाषाओ के लिए न्याय शब्द का प्रयोग किया गया है ।
"थ ये तु शास्त्रे सूचिता लोक प्रसिद्धाश्च न्यायास्तदयं यत्न क्रियते””
यद्यपि न्याय शब्द से "सूचीकटाहन्याय", "काकाक्षिगोलकन्याय” “जल तुम्विकान्याय" इत्यादि लोकप्रसिद्ध न्याय गृहीत किये जाते हैं किन्तु इस शब्दानुशासन मे "नीयते सदिग्धार्यो निर्णयमेभिरितिन्याय " इस व्युत्पत्ति के आधार
पर सदिग्धार्य का निर्णय जिसके द्वारा किया जाय वह न्याय कहा गया है । भिक्षुशब्दानुशासन मे तीन प्रकार के न्याय उपलब्ध होते है पाणिनीय सूत्र यहाँ न्याय रूप में स्वीकार है
१ कुछ