Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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भिक्षुशब्दानुशासन एक परिशीलन १५७ पाणिनीय सज्ञा अर्थ के विना ही इस सूत्र को स्वीकार करता है। ३६. नस् नासिकायास्तस् क्षुद्रर्यो ३।२।११६
नासिका शब्द को नस् आदेश होता है, य प्रत्यय परे हो तो, वर्ण अर्थ को छोडकर । नासिकाय हितं तत्रभव वा नस्यम् । पाणिनीय मे यह सूत्र नहीं है। ये ऽ वर्ण ३।२।१२०
नासिका शब्द को नस् आदेश होता है, य प्रत्यय परे हो तो, वर्ण अर्थ को छोडकर । नासिकार्य हितं तत्र भव वा नस्यम् । पाणिनीय मे
यह सूत्र नही है। ३८ क्रिया व्यतिहारेऽगतिहिंसाशदार्थहसोहवहवाऽनन्योन्यार्थे ३।३।२०
क्रिया व्यतिहार मे वर्तमान गति, हिंसा शब्दार्थ और हस धातु को छोडकर ह तथा वह धातु से कर्ता में आत्मनेपद होता है। व्यतिहरन्ते भार स सविवहन्ते वर्ग । पाणिनीय इस विधान मे वह धातु को स्वीकार
नही करता। ३६ के जिज्ञासायाम् ३।३।६२
शक धातु को जिनासा के अर्थ मे प्रयुक्त करे तो कर्ता मे आत्मनेपद होता है। विद्या शिक्षते, ज्ञातु शक्नुयामितीच्छतीत्यर्थ । पाणिनीय मे
यह सूत्र नहीं है । वह इसे स्वीकार नहीं करता। __ चल्याहारार्थबुधयुधनजनेड्पद्रुस भ्य. ३।३।१०३
चल और आहार अर्थ वाली चातुए तथा बुध आदि धातुमओ से अत्रिन् कर्ता की जिन्नन्त मे कर्म सज्ञा करता है। पाणिनीय इस सूत्र मे आहार
अर्थ वाली अद् धातु को स्वीकार नहीं करता है। ४१ नगृणाशुभरुच ४११६
गृण, शुभ और रूच् धातु के योग से भृशाभीक्ष्ण्यादि अर्थ मे यह प्रत्यय नही होता है । गर्हित गृणाति, भृग शोभते ।
पाणिनीय गृण धातु को यहा स्वीकार नहीं करता। ४२ नोत: ४।१।१२।
उकारात से विहित यड् प्रत्यय का लुक नहीं होता। योयूय रोरूय । पाणिनीय मे ये दोनो रूप नही बनेंगे, क्योकि वहा यड् का लोप होता
४३ वाष्पोमधूमफेनादुद्वमने ४११।२८ ।
वाष्प, अम, धूम और फेन शब्दो से उद्वमन अर्थ मे क्यड् प्रत्यय विकल्प से होता है। वाष्पायते, ऊष्मायते, धूमायते, फेनायते । पाणिनीय मे धूमायते नहीं होता ।