Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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१६६ सरकार या जीवगम्यम
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यह विधि सरन ती ही नाम गरि नो में कुछ ठप है। इसलिए
कौमुदी के सूत्र उच्चारण कुछ सूत्र प्रस्तुत है । जैसे स्याम्भ्यस्तनि श्याग्यम् नाम् दशसु
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साथ गि ३४ अनुभव होता है । उपर्युक्त सूत्रों के स्थान मे
सूत्रो का निर्माण किस प्रकार की में किया गया है. यह भी कहा बताना अत्यावश्यक प्रतीत होता है। सूत्र नं० १ के -पान मेग की जय अम् टाया मिम्, उभ्या पग्या
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ओग्- जाम् जिम नुपान् । सूत्र न०२ के स्थान मे रंग से लोग तथा सूत्र ०३ मे स्थान में वर्तमाने तिप् तम् अन्ति, सिप् बन् ध म बस्ने इस प्रकार कालुकीमुदी को व्याकरण सम्बन्धी सभी प्रकार से जटिताओं से मुक्त रखा गया है। उसके अतिरिक्त शव्द गित्रि भी उनका अपना एक नम्न प्रकार है, जो अन्यान्य व्याकरणों में कम मात्रा में पाया जाता है । उतरण 金 तोर पर "रामान्" द्वितीया विभक्ति के बहुवचन का पहै। यह गीता दीर्घशसश्चन पुसि” केवल उस एक सूत्र से ही सिद्ध हो जाता है। अर्थात् राम् अकार सहित पूर्व के स्वर को दीर्घ एवं शन् के सकार को 'न्' हो जाता है। प्रथम प्रकारें इसी सूत्र की विशेषता के लिए कहा गया है । किन्तु न शब्द को पिने के लिए लघुमिद्धान्तकौमुदी मे कितने सूत्रो को काम में लिया है, यह निम्नोक्त प्रकार से विदित होता है, जैसे "राम-शम्" सर्वप्रथम सूत्र न० १७१ तद्धिते १1३1८ से इस शकार की ३त् सज्ञा की गई। सूत्र न० ६ अदर्शन लोप १|१|६० से लोप की परिमापा । फिर सूत्र न० ७ तस्य लोप ११३ह से इत् सनिक वर्ण का लोप और सूत्र न० १६२ प्रथम यो पूर्वसवर्ण ६।१।१०२ से "राम" के अकार को दीर्घ किया गया । फिर सूत्र न० १७१ तस्माच्छमोन पुसि ६।१।१०३ से "सकार" को नकार हुआ अत रूप बना "रामान्" किन्तु फिर भी यहा सूत्र १७३ अट् कुप्याड, तुम्व्यपायेऽपि ८।४।२ से नकार को णकार होने की प्राप्ति हुई । तव उसे निषिद्ध करने के लिए सूत्र न० १७४ पदान्तस्य ८ | ४ | ३७| सूत्र का निर्माण करना पडा ।
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इसी प्रकार का एक उदाहरण और प्रस्तुत है । सखि शब्द से प्रथमा विभक्ति का "सि" प्रत्यय लाया गया। इस अवस्था मे कालुकौमुदी का सूत्र ऋदुशन
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