Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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दो प्रक्रिया-ग्रन्थ
मुनि 'दिनकर'
भिक्षुशब्दानुशासन महाव्याकरण की प्रक्रिया है कालुकौमुदी । इसके प्रणेता है विद्वद्वर्य मुनि श्री चौथमलजी । इसकी रचना वि० स० १९८१ मे हुई और तब से यह हमारे सघ के साधु-साध्वियो तथा पारमायिक शिक्षण-सस्या मे संस्कृत का अध्ययन करनेवाले मुमुक्षुओ के लिए प्रयुक्त होती रही है। इसका अध्ययन कर अनेक व्यक्ति संस्कृत मे निष्णात हुए है। मैं उसकी विशेषता के विषय मे कुछ तथ्य प्रस्तुत कर रहा हू।।
प्राचीन व्याकरण लघुसिद्धान्त कौमुदी तथा मुनि श्री चौथमल जी द्वारा रचित कालुकौमुदी के तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से कुछ उदाहरण यहा प्रस्तुत है । कितने कठिन व्याकरण के विषय को किस प्रकार सरलता और सुगमता से रखा है, यह निम्नाकित सूत्रो के द्वारा समझा जा सकता है । लघुसिद्धान्त कौमुदी के प्रत्याहार सूत्र हैं अ इ उ ण् १, ऋल क् २, ए ओ ड् ३, ऐ औ च ४, ह य व र ट् ५, लण् ६, न म ड ण न म् ७, झ भ ञ् ८, घ ढ ध स् ६, ज ब ग ड द श् १०, ख फ छठ थ च ट त व् ११, क प य १२, श ष स र १३, ह ल १४ । इस प्रकार प्रत्याहार बताने के लिए चौदह सूत्रों का निर्माण किया गया है । इन सूनो के अन्तिम अक्षरी की इत् सज्ञा बताई गई है। यहा प्रत्याहार ग्रहण करने की विधि कुछ कठिन पडती सी नजर आई। क्योकि अक्षरो की शृखला टूट सी जाती है। जैसे-अण् अ इ उ, अक्-अ इ उ ऋ ल, इक्-इ उ ऋ ल । उक्-उ ऋ ल । इस प्रकार प्रत्याहार सूनो का सम्बन्ध अलग थलग सा ही प्रतीत होता है। अत उसमे कोई सरलता दिखाई नहीं देती । इस स्थल मे कालुकौमुदी का सूत्र बहुत सरल एव उच्चारण करने मे पूर्ण स्पष्ट है। जैसे अ इ उ ऋ ल ए ऐ ओ औ ह य व र ल बण न ड म झ ढ ध घ भ-ज ड द ग ब ख फ छ ठ थ च ट त क प श ष स १११।४। स्पष्टता के लिए सधि नही की गई है। यहा प्रत्याहार ग्रहण करने की विधि अत्यन्त सुगम है। जैसे किसी ने 'अलप्रत्याहार' का उल्लेख किया, वहा "अ इ उ ऋ ल ए