Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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६० . गम्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
से प्रकाशित हुआ है, उसकी अगरेजी प्रस्तावना में जर्मन विद्वान् डा० आर० विरखे ने शा८यन व्याकरण का एक विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया है।
प्रस्तुत भाकटायन व्याकरण का मूल नाम शब्दानुशासन है। इसके रचयिता का नाम पाल्यकाति प्राप्त होता है। किन्तु ग्रन्थ मे सर्वन्न ग्रन्थकार का नाम साकिटायन ही उपलब्ध होता है।
पाल्यकीति शाकटायन जैन परम्परा के यापनीय संघ के अग्रणी और प्रसिद्ध आचार्य थे। वे अमोधवर्ष के राज्यकाल में हुए । अमोघवर्ष शक संवत् ७३६ (वि० स० ८७१) मे राजगद्दी पर बैठा। इसी के आसपास पाल्यकीति ने अपने व्याकरण अन्य की रचना की होगी।
पाल्यकीति ने अपने पूर्ववर्ती व्याकरणो मे पाणिनि, चन्द्र, और जनेन्द्र के व्याकरणो का गहन अध्ययन किया था । डा. विरवे ने पाणिनि, चन्द्र, जनेन्द्र तथा धाकटायन की तुलना करके यह स्पष्ट किया है कि शाकटायन के ४० से ५० प्रतिशत तक नियम उth व्याकरण ग्रन्थो के समान हैं। शाकटायन की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताए है
१ शाकटायन का अध्याय विभाजन पूर्वाचार्यो से भिन्न है । पाणिनि मे मी०, चन्द्र मे छह तथा जनेन्द्र मे पाच अध्याय है, किन्तु शाकटायन व्याकरण चार अध्यायों में विभक्त है। प्रत्येक अध्याय मे चार-चार पाद है। प्रथम अध्याय मे ७२१ सूत्र, द्वितीय मे ७५३, तृतीय मे ७५५ तथा चतुर्थ मे १००७ सूत्र है। इस प्रकार कुल सूत्र संख्या ३२३६ है । इसमे १३ शिव सूत शामिल नहीं है, जो ग्रन्य के प्रारम्भ में उपलब्ध है। अध्याय विभाजन में शाकटायन कातन्त्र के निकट है।
२ भकिटायन ने अपने व्याकरण की विषयवस्तु को भी पूर्वाचार्यों की तरह प्रस्तुत न करके उसे स्वतन्त्र रूप से प्रस्तुत किया है। यह विपयक्रम भी कातन्त के अधिक निकट है।
३ शाकटायन व्याकरण में कोतन्न तया जैनेन्द्र की तरह स्वर नियम नही दिये है। इसी प्रकार छान्दस प्रयोगो का भी सर्वथा अभाव है।
४ गाकटायन और पाणिनि के पारिमापिक शब्दो की तुलना करने पर निम्नलिखित तथ्य ज्ञात होते है
(क) भाकटायन तथा पाणिनि में प्रयुक्त अनेक पारिभाषिक शब्द समान है। जम अनुनामिक (१।१।६८),अनुस्वार (१११११०), अव्यय (११११३९), अव्ययीभाव (२०१६) इत्यादि।
(ख) का८यन ने पाणिनि के शब्दों के स्थान पर नये शब्द दिये है जैसे पाणिनि के अग के लिए प्रकृति (११११५६), अविकरण के लिए आधार (१।३।१७६) यादि ।
(ग) शकिटायन ने पाणिनि की अनेक परिभाषाओ को छोड़ दिया है।