Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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भिक्षुशब्दानुशासन एक परिशीलन : १५१
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प्रक्रिया, सन्नन्तप्रक्रिया, यन्तप्रक्रिया, यङ्लुगन्तप्रक्रिया, नाम धातुप्रक्रिया, प्रत्ययमालाप्रक्रिया, पदव्यवस्थाप्रक्रिया, भावकर्मप्रक्रिया, कर्मकर्तृ प्रक्रिया, विभक्त्यर्थप्रक्रिया | कृदन्त प्रकरण मे पूर्वकृदन्त, उणादि उत्तरकृदन्त ।
पूर्वार्द्ध मे ७५१ सूत्र हैं और उत्तरार्द्ध मे ७२१ सूत्र | ८३३ धातुए हैं ।
વિશેષતાણું
१ भिक्षुशब्दानुशासन की अपनी विशेषताए है । क्योकि आज तक उपलब्ध व्याकरणो मे यह अन्तिम व्याकरण है, अत अन्य व्याकरणो की अपेक्षा इसे सरल बनाने का प्रयत्न किया गया है । जैसे
पाणिनीय मे प्रत्याहार के लिए १४ सूत्र दिए गए हैं । इस व्याकरण मे केवल एक सूत्र मे सारे वर्णो का प्रत्याहार किया गया है, वर्ण अनुबन्ध रहित हैं, केवल उच्चारण की सुविधा के लिए सधि नही की गई है ।
२. इस व्याकरण मे धातुओ का ज्ञान प्रथम क्षण मे उच्चारण से ही हो जाता है कि यह आत्मनेपदी है, परस्मैपदी है या उभयपदी । आत्मनेपदी के लिए ड् अनुबंध है और उभयपदी के लिए 'न्' अनुबंध स्वीकार किया गया है । परस्मैपदी के लिए कोई अनुवन्ध नही हैं । जैसे
गाड् गाने=आत्मनेपदी
डुकृत् करणे = उभयपदी हम् हंसने = परस्मैपदी
हेमशब्दानुशासन को छोडकर अन्य व्याकरणो मे ऐसी सरलता नही है कि उन्पारण के साथ ही आत्मनेपदी, परस्मैपदी आदि का बोध हो जाए । हेमशब्दानुशासन मे आत्मनेपदी और उभयपदी के लिए दोदो अनुवध स्वीकार किए हैं। आत्मनेपदी के लिए इ और ड्, उभयपदी के लिए ई और ग् । जैसे
डुपचीस् पाके= उभयपदी
डुकृ ग् करणे =उभयपदी
ईक्षि दर्शने = आत्मनेपदी
वदुड् स्तुत्यभिवादनयो. = आत्मनेपदी भू सत्तायाम्=परस्मैपदी
भिक्षुशब्दानुशासन मे केवल एक-एक अनुबंध स्वीकार किया गया है ।
३. धातुओ के अनुबन्ध से गणो का वोघ सुगमता से हो जाता है । भ्वादिगण की धातुए अनुबन्ध रहित हैं, शेष गणो के लिए एक-एक अनुबन्ध है । जैसे