Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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संस्कृत व्याकरणो पर जैनाचार्यों की टीकाए एक अध्ययन १२३
प्रणम्य शारदा देवी ज्ञाननेनप्रबोधिनीम् । शावमिकसूत्राणा प्रक्रिया च क्रमाद् अ॒वे ।।
२७ बालावबोध
राजगन्छीय हरिकलश उपाध्याय ने बालको के ज्ञानार्थ इसे लिखा था। इसके हस्तलेख बीकानेर में प्राप्त है । पण्डित गोल्हणकृत सुगम टीका का अध्ययन करने के अनन्त र ग्रन्थकार ने टिप्पणी के रूप में इसकी रचना की है
दृष्ट्वा गोल्हणटीका सुगमा लिखति स्म राजगन्छीय । हरिकलशोपाध्यायष्टिपनक वालबोधार्थम् ।।
२८. वृत्तित्रयनिबन्ध
आचार्य राजशेखर सूरि ने कातन्त्रव्याकरण के आधार पर इसका प्रणयन किया है। ग्रन्थ के नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि कातन्त्र की तीन वृत्तियो का इसमे विचार किया गया होगा, परन्तु ग्रन्थ के अप्राप्त होने से अधिक कहा नही जा सकता। (द्र०-जनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५)।
वर्णित ग्रन्थो के अतिरिक्त वर्धमानप्रकाश, वर्धमानसारव्याकरण, वर्धमानप्रक्रिया, वर्धमानसंग्रह आदि उपलब्ध अनेक ग्रन्थो के रचयिता भी जैनाचार्य जैसे प्रतीत होते हैं, परन्तु सन्देहवश उनका परिचय यहा नही दिया जा रहा है।
सारस्वत व्याकरण पर टीकाएँ अनुभूति स्वरूपाचार्य द्वारा प्रोक्त सारस्वत व्याकरण मे मूल सूत्र ७०० माने जाते हैं। इस व्याकरण की रचना विद्याधिष्ठात्री देवी सरस्वती की विशेष अनुकम्पा से की गई थी। इसके अनेक रूपान्तर भी किए गए है, जिनमे रामाश्रमप्रणीत सिद्धान्तचन्द्रिका प्रमुख है । सारस्वत व्याकरण पर अनेक सम्प्रदाय के आचार्यों ने टीकाए लिखी है । इनमे जैनाचार्यों की भी २५ टीकाओ का उल्लेख प्राप्त होता है । यहा आचार्य चन्द्रकीति-प्रणीत 'सुवोधिका' टीका का विस्तृत परिचय पहले दिया जायेगा, शेष २४ टीकाओ का सामान्य ही परिचय प्रस्तुत होगा। इन सभी टीकाओ मे से २३ का उल्लेख अम्बालाल प्रेम शाह ने तथा शेष दो का युधिष्ठिर मीमासक आदि ने किया है।
१ सुबोधिका
आचार्य चन्द्रकीतिसूरि ने सारस्वत व्याकरण की यह टीका लिखी है, जिसे ग्रन्यकार के नाम चन्द्रकीति से भी अभिहित किया जाता है । सरल, सुवोध