Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
View full book text
________________
संस्कृत व्याकरणो पर जैनाचार्यों की टीकाए एक अध्ययन १३३
सवोबन नास्तीत्युत्सर्ग । प्रचुरप्रयोगादर्शनमेवान मूलम् । भाष्ये तु 'हे स' इत्युक्तम् (पूर्वार्ध १०।२०)।
३ पिद्भिदाम (उत्तरार्ध ३०१५२) । मृजूप शुद्धो मृणा। कय तर्हि 'मधुमुरभिमुखाजगन्धलवे' (७१४१) इति मा५ । 'प्रेक्षोपलब्धिश्चित् सवित्' इत्यमरश्च । पित्वादिहाड् प्रत्यय उचित , सत्यम् । अनर्थकास्तु प्रतिवर्णमर्यानुलब्धे' इति भायप्रयोगाद् बाहुलकात् क्तिप्रत्ययोऽपि बोध्य ।
२ अनिट्कारिकावचूरि ___ मुनि क्षमामाणिक्य ने इसे लिखा था। इसकी हस्तलिखित प्रति बीकानेर के श्रीपूज्य जी के भण्डार मे है। ३ अनिट्कारिका-चोपज्ञवृत्ति __नागपुरीय तपागच्छ के हपकीतिसूरि ने इसकी रचना की है । अनिट्कारिका का रचना काल म० १६६२ तथा स्वोपजवृत्ति का स० १६६६ है। हस्तलिखित प्रति वीकानेर के दानसागर-भण्डार मे है ।
४ भूधातुवृत्ति
खरतरगच्छीय क्षमाकल्याणमुनि ने इस वृत्ति की रचना वि० स०१८२८ मे की है। इसका हस्तलेख राजनगर के महिमाभक्ति-भण्डार मे है।
५ मुग्धाववोध-औक्तिकम्
तपागच्छीय आचार्य देवसुन्दरसूरि के शिष्य कुलमण्डनसूरि ने १५ वी शताब्दी मे इसे बनाया है।
६ सिद्धान्तचन्द्रिका-टीका
आचार्य जिनरत्नसूरि को इसका प्रणेता माना गया है । जनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५ मे प० अम्बालाल प्रेम शाह के अनुसार यह टीका प्रकाशित होनी चाहिए, परन्तु मैंने इसे नहीं देखा है। ७ सिद्धान्तचन्द्रिकावृत्ति
खरतरगच्छीय मुनि विजयवर्धन के शिष्य ज्ञानतिलक ने १८ वी शताब्दी मे इसे लिखा है। इसकी हस्तलिखित प्रतियां बीकानेर के महिमाभक्तिभण्डार और अबीर जी के भण्डार मे है।