Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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संस्कृत के जैन वैयाकरण एक मूल्यकिन ७५
स्व. डा. वासुदेवशरण अग्रवाल की 'जैनेन्द्र महावृत्ति की भूमिका, डा० आर० विवे की शाकटायन व्याकरण की अगरेजी प्रस्तावना, १०डा० नेमिचन्द्र शास्त्री के निबन्ध तथा जैन साहित्य का वृहद् इतिहास भाग (पाच) की सामग्री को भी समाहित किया है। ___आचार्य श्री कालूगणी की शताब्दी के पुण्य-प्रसग पर उन सभी विद्वानो के लिए हमारा यह नवेद्य निवेदित है।
सदर्भ
१. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग ५, पृ० ६ । २ जन विद्या का सास्कृतिक अवदान, पृ० ४२-४३ । ३ जन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग ५, पृ० ४ । ४ टा० आ० ने० उपाध्ये, जनरल एडिटोरियल, शाकटायन व्याकरण, पृ० १२। । ५ जन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग ५। ६ डा. वासुदेवशरण अग्रवाल-जनेन्द्र महावृत्ति की भूमिका पृ० ६-१२ । ७ युधिष्ठिर भीमासक-जनेन्द्र शब्दानुशासन तथा उसके खिल पाठ, जैनेन्द्र महावृत्ति,
पृ०३६। ८ वही, पृ० ४३.४४। ६ प्रबन्ध पारिजात, पृ० २१४, उद्धृत जै० सा० वृ० इ०, भाग ५। १० सिस्टम्स आफ संस्कृत ग्रामर, परा ५० । ११ शिलालेख संग्रह, भाग १, पृ० ११८ । १२ प्रमेयकमलमार्तण्ड, प्रस्तावना, पृ० ६७ । १३ सनातन जन ग्रन्थमाला ५, वाराणसी । १४ सिस्टम्स आफ सस्कृत ग्रामर, पृ० ७१ । १५ जैन विद्या का सास्कृतिक अवदान, पृ० ५३-६० । १६ द्रष्ट०५ --आचार्य हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन ।