Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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आचार्य हेमचन्द्र और पाणिनि ७६
वतलाई गई है। यहा आख्यात के विशेषण का अर्थ है अव्यय, कारक, कारक विशेषण और क्रिया विशेषणो का साक्षात् या पर+परया रहना। आगे वाले वृत्यश से स्पष्ट है कि प्रयुज्यमान अयवा अप्रयुज्यमान विशेपणो के साथ प्रयुज्यमान अथवा अप्रयुज्यमान आख्यात को वाक्य कहा गया है। यहा विशेषण शब्द द्वारा केवल सज्ञा विशेषण का ही ग्रहण नही है, अपितु साधारणत अप्रधान अर्थ लिया गया है और आख्यात को प्रधानता दी गई है। वैयाकरणो का यह सिद्वान्न भी है कि वाक्य मे आख्यात का अर्थ ही प्रधान होता है। तात्पर्य यह है कि हेम की वाक्य परिभाषा सर्वाङ्गपूर्ण है। इन्होने इस परिभाषा का सन्नध्वाक्य प्रदेश पदाधुग्विभक्त्येकवाक्ये वस्नसौ बहुत्वे' २१११२१ सूत्र से भी माना है। पाणिनि या अन्य पाणिनीय तन्त्रकार वाक्यपरिभाषा को हेम के समान सर्वागीण नही बना सके हैं । यो तो 'एकतिड वाक्यम्' से कामचलाऊ अर्थ निकल आता है और किसी प्रकार वाक्य की परिभापा बन जाती है, पर समीचीन और स्पष्ट रूप मे वाक्य की परिभाषा सामने नही आ पाती है। अत: आचार्य ने वाक्य परिभाषा को बहुत ही स्पष्ट रूप से उपस्थित किया है।
हेम ने सात सूत्रो मे अव्ययसज्ञा का निरूपण किया है । इस निरूपण मे सबसे वडी विशेषता यह है कि निपातमज्ञा को अव्ययसजा मे ही विलीन कर लिया है। उन्होने चादि को निपात न मानकर सीधा अव्यय मान लिया है। यह एक सक्षिप्तीकरण का लघुतम प्रयास है। इत् प्रत्यय और सख्यावत् सज्ञाओ का विवेचन भी पूर्ण है। हेम ने अनुनासिक का अर्थ व्युत्पत्तिगत मान लिया है, अत इसके लिए पृयक सूत्र बनाने की आवश्यकता नही समझी है। सज्ञाप्रकरण की हेम की सज्ञाए श०दानुसारी हैं, किन्तु आगे वाली कारकीय सज्ञाए अर्थानुसारी है। पाणिनि के समान हेम की सज्ञाओ का तात्पर्य भी अधिक से अधिक शब्दावली को अपने अनुशासन द्वारा समेटना मालूम पडता है । अत हेम ने पाणिनि की अपेक्षा कम सज्ञाओ का प्रयोग करके भी कार्य चला लिया है । यह सत्य है कि हेम ने पणिनीय व्याकरण का अवलोकन कर भी उनकी सशाओ को ग्रहण नही किया है। ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत सज्ञ.ए पाणिनि ने भी लिखी हैं किन्तु हेम ने इन सज्ञाओ मे स्पष्टता और सहज बोधगम्यता लाने के लिए एक, द्वि और त्रिमात्रिक को क्रमश ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत कह दिया है। वस्तुत पाणिनि के 'कालोऽज्झस्वदीर्घप्लुत' १।२।२७ सूत्र का भाव ही अकित करके हेम ने एकमात्रिक, द्विमानिक और विमात्रिक कहकर सर्वसाधारण के लिए स्पष्टीकरण किया है। हेम के 'औदन्ता स्वस: १।१।४ को अनुवृत्ति भी उक्त सज्ञाओ मे विद्यमान
पाणिनि का सवर्णसज्ञा विधायक 'तुल्यायस्यप्रयत्न सवर्णम् १।शा सूत्र है। हेम ने इमी सजा के लिए 'तुल्यस्थानास्यप्रयत्न स्व.' १११।१७ सूत्र लिखा है। इस