Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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संस्कृति के जैन वैयाकरण एक मूल्यांकन ६६
गणो का सग्रह करके गणरत्नमहोदधि नामक ग्रन्थ लिखा। यह ४२०० श्लोक प्रमाण है। इसकी रचना वि० स० ११९७ मे हुई।
इस प्रकार शाकटायन की टोकाओ से ज्ञात होता है कि जैन परम्परा मे उसका प्रसार अत्यधिक मात्रा मे हुआ।
ભાવાર્ય હેમવદ્ર જો સિદમશદ્વાનુશાસન जन व्याकरणशास्त्र की मुनित्रयी मे पूज्यपाद और शाकटायन के बाद तीस२॥ नाम आचार्य हेमचन्द्र का है। सौभाग्य से आचार्य हेमचन्द्र का विपुल साहित्य उपलब्ध है । उससे उनके जान वैभव का पता चलता है।
गुर्जर नरेश सिद्धराज जयसिंह के अनुरोध पर आचार्य हेमचन्द्र ने सिद्धराज के साथ अपना नाम जोड कर सिम शब्दानुशासन की रचना की । इसकी रचना का समय वि० स० ११४५ के लगभ माना जाता है।
हेमशब्दानुशासन का परिमाण सवा लाख श्लोक माना जाता है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण पर छोटी-बडी वृत्तिया तथा उणादिसून, धातुपाठ, गणपा०, लिंगानुशासन स्वय ही बनाए है ।
हेम में पाठ अध्याय है। पहले सात मे संस्कृत शब्दानुशासन है तथा आठवें मे प्राकृत शब्दानुशासन । स्व. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने हेम शब्दानुशासन की निम्नलिखित विशेषताओ की ओर ध्यान आकृष्ट किया है
१ हेम के पूर्व पाणिनि, पान्द्र, पूज्यपाद, शाकटायन और भोजदेव आदि कितने ही वैयाकरण हो चुके है। इन्होने अपने समय मे उपलब्ध समस्त शब्दार्थ को अध्ययन कर एक सागपूर्ण, उपयोगी एप सरल व्याकरण की रचना कर सस्कृत और प्राकृत दोनो भाषाओ को पूर्णतया अनुशासित किया है। तत्कालीन प्रचलित अपभ्र श भाषा का अनुशासन लिख कर हेम ने इस भाषा को अमर बना ही दिया है, किन्तु अपभ्र श के प्राचीन दोहो को उदाहरण के रूप में उपस्थित कर लुप्त होते हुए महत्त्वपूर्ण साहित्य के नमूनो की रक्षा भी की है। वास्तविकता यह है कि शब्दानुशासक हेम का व्यक्तित्व अद्भुत है। उन्होने धातु और प्रातिपदिक
और प्रत्यय, समास और वाक्य, कृत और तद्धित, अव्यय और उपसर्ग प्रभृति का निरूपण विवेचन एक विश्लेषण किया है।
२ शब्दानुशासन के क्षेत्र मे हेमचन्द्र ने पाणिनि, भट्टोजिदीक्षित और भति का कार्य अकेले ही सम्पन्न किया है। इन्होने वृत्ति के साथ प्रक्रिया और उदाहरण भी लिखे है । सस्कृत शब्दानुशासन सात अध्यायो मे और प्राकृत शब्दानुशासन एक अध्याय मे, इस प्रकार कुल आठ अध्यायो मे अपने अष्टाध्यायी शब्दानुशासन को