Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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आचार्य श्री कालूगणी व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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सवत्सरी पर्व जैन धर्म का सबसे बडा पर्व है । इस पर्व को समूचा जैन समाज त्याग, तपस्या के द्वारा मनाता है । इस दिन महत्त्वपूर्ण प्रवचन होते है । वर्ष भर नही आने वाले लोग भी उस दिन प्रवचन सुनने आते हैं । आचार्यवर सवत्सरी के दिन प्राय वारह बजे तक प्रवचन किया करते थे। आज वे प्रवचन नही कर सके । उनका यह कार्य मैंने किया । आचार्यवर उस दिन शात, मौन लेटे रहे । नाडी मन्द थी । वातावरण पूर्ण नीरव था। रात भी उसी प्रकार बीती । पिछली रात मे थोडी ठड हुई । आचार्यवर ने मौन खोलते हुए कहा- कल तो पूर्ण विश्राम किया । उसे ( मुझे ) पूछा भी नही कि लम्बे समय तक प्रवचन किया, उससे थकान आई या नही ? प्यास लगी या नही ? मुझे आमन्त्रित किया । मैं तत्काल वहा पहुचा और मैंने कहा आपकी कृपा से सब ठीक रहा । छठ का सूर्य उदित हुआ । आचार्यवर का सकल्प पूरा हो गया । साधुसाध्वियों के अनुरोध पर आचार्यवर ने उपवास का पारणा किया। सबको कुछ आश्वासन मिला। ऐसा लगा मानो दुस्तर समुद्र तैर लिया गया हो । शरीर की इस क्षीणावस्था मे सवत्सरी का उपवास कैसे होगा, पानी विना यह शरीर कैसे टिकेगा ? जब यह हो गया, तब समझा, अब खतरा टल गया । पर हमारी सद्भावना और मन का स्वप्न नियति को मान्य नही था । हमारे मन का आश्वासन चिरकाल तक टिक नही सका । दिन का चौथा पहर आया । साझ ढल रही थी । आचार्यवर ने पूछा दिन कितना शेष है ? मैंने पता लगाकर बताया पौने छः वजे है । नीम मिनट दिन शेष है। आचार्यवर वोले मुझे बैठा करो, पानी पीना है । मैंने प्रार्थना की आज बैठने की शक्ति नही है इसलिए आप लेटे-लेटे ही जल लें, आचार्यवर ने कहा भेटे-लेटे तरल वस्तु नही पीनी चाहिए । साधुओ ने हाथ का सहारा दिया । आचार्यवर बैठ गये । थोडा-सा जल लिया । फिर लेट गये। जैसे ही लेटे, वैसे ही श्वास का प्रकोप हो गया । धीमी-सी आवाज मे आचार्यवर ने पूछा मगनलालजी स्वामी जगल से लौटे या नही ? मैंने कहा अभी आये नही हैं, याने ही वाले हैं । तत्काल सत उनके सामने गए और इस घटना की उन्हें सूचना दी। मगनलालजी स्वामी तेज नही चल सकते थे पर जितनी शीघ्रता हो सकी, उतनी शीघ्रता से वहा पहुचे । मैंने कहा --- मगनलालजी स्वामी आ गए हैं । आचार्यवर ने उनकी ओर देखकर कहा – 'अब ' इससे अधिक कुछ नही कहा जा सका ।
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मगनलालजी स्वामी ने पूछा अनशन करा प्रत्याख्यान कराए ? 'हा', कहकर आचार्यवर ने स्वीकृति दी । मगनलालजी स्वामी ने ऊचे स्वर मे कहा आज से अर्हन्त, सिद्ध के साक्ष्य से आजीवन चतुर्विध आहार का त्याग है । इसके वाद वे जोर-जोर से बोलते गए 'अर्हन्तो की शरण है, सिद्धो की शरण है, हम सब भी आप की शरण है ।' शरण-सूत्र की ध्वनि ने समूचे वातावरण को जागरण से