Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
दिन को फेर ॥ शशि शीतल संयोग में, तपत विरह की बेर ॥२१॥ भले बुरे सब एकसे, जौ लौं बोलत नाहिँ ॥ जान परत है कौक पिक, ऋतु वसन्त के माहिँ ॥ २२ ॥ निसफल श्रोता मूढ़ यदि, वक्ता वचन विलास ॥ हाव भाव ज्यों तीये के, पति अन्धे के पास ॥ २३ ॥ कुल अरु गुण जाने विना, मान न कर मनुहार ॥ ठगत फिरत ठग जगत को, भेष भगत को धार ॥ २४ ॥ हित हू की कहिये न तिहिं, जो नर होय अबोध ॥ ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाये क्रोध ॥ २५ ॥ मूरख को पोथी दई, बांचन को गुनगाथ ॥ जैसे निर्मल आरसी, ई अन्ध के हाथ ॥ २६ ॥ मधुर वचन से मिटत है, उत्तम जन अमिमान ॥ तनक शीत जल से मिटै, जैसे दूध उफान ॥ २७ ॥ जिहिँ से रक्षा होत है, हुवै उसी से घात ॥ कहा करै कोऊ जतन, बाड़ काकड़ी खात ॥ २८ ॥ सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय ॥ पवन जगावत आग कों, दीपहिँ देत बुझाय ॥ २९ ॥ समय समुझि जो कीजिये, काम वही अभिराम ॥ सिन्धंव माग्यो जीमते, घोड़े को कह काम ॥ ३० ॥ जो जिहिँ भोवै सो भलो, गुन को कछु न विचार ॥ तजे गजकता भीलनी, पहिरत गुजाहार ॥ ३१ ॥ जासों चालै जीविका, करिये यो अभ्यास ॥ वेश्या पालै २शील तो, कैसे पूरै आस ॥ ३२ ॥ दुष्ट न छोड़े दुष्टता, नाना शिक्षा देत ॥ धोये हूँ सौ बेर के, काजल होत न श्वेते ॥ ३३ ॥ एक भले सब को भलो, देखो विशद विवेक ॥ जैसे संत हरिचन्द के, उधरे जीव अनेक ॥ ३४ ॥ एक बुरे सब को बुरो, होत सबल के कोपें ॥ औगुन अर्जुन के भयो, सब क्षत्रिन को लोप ॥ ३५ ॥ मान होत है गुनन तें, गुन विन मान न होय ॥ शुंक सीरिक राई सबै, काग न राखै कोय ॥ ३६ ॥ आडम्बर तजि कीजिये, गुण संग्रह चित चाँहि ॥ दूधरहित गउ नहिँ बिकै, आनी घण्ट बजाँहि ॥ ३७॥ जैसे गुण दीन्हें देई, तैसो रूप निबन्ध ॥ ये दोऊ कहँ पाइये, सोनो और सुगन्ध ॥ ३८ ॥ अभिलॉपी इक बात के, तिन में होय विरोध ॥ काज राज के राजसुत, लड़त भिड़त करि क्रोध ॥ ३९ ॥ नहिँ इलाज देख्यो सुन्यो, जासों मिटत सुभाव ।। मधुपुट कोटिक देत हूँ, विष न तजत विषभोव ॥ ४० ॥ प्रीति निवाहन कठिन है,
१-चन्द्रमा ॥ २-दुःख देता है ॥ ३-जुदाई ॥ ४-समय ॥ ५-तक ॥ ६-कौआ ।। ७-कोयल ॥ ८-मौसम बहार ॥ ९-सुनने वाला ॥ १०-मूर्ख ॥ ११-बोलने वाला : १२-स्त्री ॥ १३-अज्ञान, मूर्ख ॥ १४-ठंढा ॥ १५-पीड़ा, हानि ॥ १६-हवा ॥ १७-सु न्दर ॥ १८-घोड़ा तथा सेंधानोन ॥ १९-अच्छा गता है ।। २०-हाथी के मोती ॥ २१-यु घुची (चिरमी) की माला ॥ २२-सदाचार ।। २३-सफेद ॥ २४-बड़ा, अच्छा ॥ २५-ज्ञान । २६-सत्य हरिश्चन्द्र राजा, जिन्हों ने राज्य आदि को छोड़कर भी सत्य को नहीं छोड़ा था । २७-बलवान् , जोरावर ॥ २८-गुस्सा ।। २९-तोता ।। ३०-मैना ।। ३१-ढोंग ।। ३२-सं. चय ॥ ३३-विधाता, ईश्वर ॥ ३४-चाहनेवाले ॥ ३५-वैर ॥ ३६-राजपुत्र ॥ ३७-शहद के पुट ॥ ३८-करोड़ों ॥ ३९-विपैलापन ॥
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