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सहन करना यही क्षमा धर्म है तथा जिन आत्माओं ने कष्ट दिया है उन्हों पर मन से भी द्वेष न करना यह " दया'" धर्म है परन्तु क्षमा और दया का भी मूल कारण सपहा है अतएव ! सिद्ध हुशा तप कर्म अवश्य ही करना चाहिए।
संसार भर में हर एक पदार्थ की प्राप्ति हो सकती है जैसे कि-धन, परिवार, जाम, मन इच्छित सुख परन्तु तप करने का समप प्राप्त होना भति कठिन है क्यों कि-तप कर्म उस दशा में हो सकता है जब शरीर पूर्ण निरोम दशा में हो और पांचों इन्द्रिये अपना २ काम ठीक करती हों फिर तप कर्म करते हुए इस विचार की भी आवश्यकता हाती है कि-जिस प्रकार 'तप (मत्पाख्यान ) नपण किया गया हा र को उसी प्रकार से पालन किया जाए। इस विषय में मत्याख्यान करते समय ४९ मांगे फयन किए गए है-मांगे शब्द का यह अर्थ है कि एक प्रकार में मत्यारुपान, किया हुआ है दूसरे प्रकार से प्रत्याख्यान नहीं है। जैसे कल्पना करो किसी ने प्रत्याख्यान किया कि-माम मैं मन से कंदमुख नहीं खाऊंगा