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जो आत्मा प्राधव से छूटगया और उसके पुण्य पाप तय होगए तो वही समय उस आत्मा के मोक्ष का माना जाता है यदि किंचित् मात्र पुण्य पाप की प्रकृर्तिय रहगई हों तब वे जीवन मुक्त की दशा को प्राप्त हो। जाता है अतएव ! सिद्ध हुआ काय का वश करना प्रावश्यकीय है। . यर्याप साधु वृत्ति के सहसो सुरुण वर्णन किए हुए है किन्तु गुख्य गुण यही है जो पूर्व सहेल चुके हैं इन्हीं गुणों में शन्य गुण भी आ जाले हैं इसलिए साधु वृत्ति के द्वारा जीवन व्यतील करमा पवित्र आत्माओं का सुरुष कर्तव्य है और शाति की प्राप्ति इसी जीवन के हाथ में है और किमी स्थान पर शान्यि नहीं मिल सकती-त्यों कि-क्षमा, दमिन इन्द्रिय-और निग रंभ रूप पती पूर्वोक्त वृत्ति कथन की गई है।
হন না" দ্বাস্তু (नियम करने के भांगे विषय) fr: मुज्ञ पुरुषों ! इस सार सभार में केवल धर्म की सा पदार्थ है जिसने करने से प्राणी हर एक