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के उपाय किये जा सकते हैं उन उपायों से कदाचित् शस्त्र के प्रहारों से बचाव हो भी सकता है, किन्तु वचन रूपी शस्त्र विना रोक टोक से कानों में प्रविष्ट हो जाता है, फिर श्रवण में गया हुमा वह प्रहार मन पर विजय पाता है जिस के कारण से मन औदासीन दशा को प्राप्त हो जाता है। अबएव ! सिद्ध हुआ कि वचन के समान कोई भी भौर शस्त्र नहीं है। इस लिये पचन गुप्ति का धारण फरना आवश्यनीय है एव वचन गुप्ति ठीक की जायेगी सघ बचन के विकार से जीव रहित होता हुया अध्यात्म वृत्ति में प्रविष्ट हो जाता है। अर्थात् आध्यात्मिक दशा में चला जाता है जिसके कारण से वह अपने आप को वा अनेक शक्तियों को देखने लगता है। यदि उस के मुख से अकस्मात् वचन भी निकल जावे तो वह वचन उसका मिथ्या नहीं होवार पर और शाप की शक्ति उस को हो जाती है इस सिये वचन गप्ति का होना बहुत ही भाक्श्यकीय है। तथा जो बहु भाषी होते हैं उनकी सत्यता पर लोगों का विश्वास वन्प हो जाता है। साथ ही वह भनेक प्रकार के कष्टों के मुंह को देखता है सो जब वचन सप्ति होगई व काप गुप्ति का होना भी मगम पाव है।