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है। जैसे कि - जिस का मन वश में नहीं है उस को चिस की एकाग्रता कभी भी नहीं हो सक्ती चित्त की एकाग्रता विना शान्ति की प्राप्ति नहीं होती जब चित्त को शान्ति ही नहीं है तत्र क्रियाकलाप केवल' कष्टदायक श्री हो
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जाता है अतएव ! सिद्ध हुआ एकाग्रता के कारण से ही शान्ति की प्राप्ति मानी गई है।
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कल्पना कीजिये ! एक बड़ा पुरुष है उसको लौकिक पक्ष में हर एक प्रकार की सामग्री की प्राप्ति हुई २ है जैसे धन, परिवार, प्रविष्ठा, व्यापार, लौकिक सुख, किंतु मन उस का किसी मानसिक व्यथा से पीडित रहता है जब उससे पूछो तब वह यही उत्तर प्रदान करेगा कि मेरे समान कोई भी दुःखी नहीं है, अब देखना इस वास का है - यदि धन, परिवारादि के मिलने से ही शान्ति होती तो वह पदार्थ उस को प्राप्त हो रहे थे। तो फिर उसे क्यों दुःख मानना पड़ा, इस का उत्तर यह है कि - चित्त की शान्ति प्रवृत्ति में नहीं है, निवृत्ति में ही चित्त की शान्ति हो सकती है इस लिये जव चित्त की शान्ति होगी तब ही सयम का जीव आराधक हो सकता है, यद्यपि सयम