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((011)) शम्द को हर पर्फ मकार से पासपा की परत सपापमर्ग-और “पमा पाव "प्रथा मत्सय से ही संपर्य शम पनवा है सा मिस का पर्प पहो ।झान पूर्वक निति राहामा पप सम्यग् मान से ऐणा का निराप किया आयेगा ना ती भात्या अपने संपम की मारापा म सस्ता सपा ममोरप्ति दाग हर एक प्रकार की शक्तियें भी सस्पनर सपना है। पेस्मेरेशम रिचा एक मन की शक्ति का ही फल है सोनप समाप्ति होगी स्पषन एप्ति का सना स्थापाविक बात है।
पचन गुप्ति। पन पा करने से सब महार पसेप मिर मावे हमाप कमेपों की उत्पत्ति पपन केही परण पे हो जान क्यों -अब बिना रिवार किए बचन पाया जा। पर वपन दूसर रे मनुष्य न न स पलेप जन्य बन मारे शास्त्रों में सिमा गया कि-शम्मा के मार गए विस्मृत समाव भिम्सु पगन रूपी शप पा महार लगा पा विस्मृत होना फठिन पाता। शस्त्रों मावे सपप समरे टासने सिय पने मकार