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( प्रकार के मस पा सकता है जैसे पपड़ा पिणास प्रकृमिव इमा बाग देखने में माता है और उसको देस र प्रत्येक भास्मा का रित मानंदित हो नावा
पर उस पागदी खचमी पर विचार पिया माता तर या निमपाइप पिना मही रावा किस माग का मन मा पिन सुधार पसी कारण से इसकी सचमी प्रतीच पा गई है। इसी हेतु मे मामा भावा पि-मिस मारमा के पन के मनोरथ पूरे हा भावे । मौर पर सर्व स्थानों पर मतिप्ठा मी पावा रे पसका मखोरण पर पर्म ही है। जैसे भावों स रसन पर्म किया या पैसरी फस उस भारमा को ग गये । इस थिए ! पर्म का करना पस्पापरपसीप है।
मा परन पा खड़ा रावा है कि-फौनसा पर्म प्राण किपा माए ! वप इसका पत्तर पहरे रि-ग्रास्त्रों मे दीन प्रग पर्म रूपम किए रे मैसे लिप, घमा, और दया, सो पप इण निराप का मामा कों का पान करने को भी पीकावेरेनर को का सपप मा नाप तर पन करों को शान्ति पूर्पक