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अतिक्रम आदि का वर्णन
अतिक्रम व्यतिक्रम और अतिचार आधाकर्म के आश्रय से शास्त्रान्तर में इस प्रकार कहे हैं
आधाकर्म की निमंत्रणा की स्वीकृति से लेकर उसके लिये कदम रखने को तैयार होने तक साधु को अतिक्रम लगता है। कदम रखने से लेकर के ग्रहण करने को तैयार होने तक व्यतिक्रम माना जाता है, ग्रहण करने से लेकर खाने को तैयार होने तक अतिचार माना जाता है, खाने लगे कि-अनाचार याने एषणासमिति का भंग हुआ समझना चाहिये कहा है किः-..
आहाकम्मनिमंतण-पडिसूणमाणे अइक्कमो होइ। पयभेयाइ वइकम-गहिए तइएयरो गिलिए।
अर्थः--आधाकर्म की निमंत्रणा स्वीकृत करने से अतिक्रम माना जाता है, कदम रखा कि व्यतिक्रम माना जाता है, लेने से तीसरा याने अतिचार माना जाता है और खाने से अनाचार माना जाता है। . .
इस प्रकार इसके अनुसार इस स्थान पर भी प्रथम तीन ‘पदों में अतिचार विचार लेना चाहिये, क्योंकि अतिक्रम और व्यतिक्रम भी अतिचार विशेष ही है, तथा चौथे अनाचार रूप पद में विवक्षित व्रत का भंग होता है इस बात को संक्षेप में बताते हैं अतः इसी भांति स्त्री को भी पांच अतिचार विचार लेना चाहिये। . इस प्रकार अतिचार सहित चौथा अणुव्रत कहा, अब स्थूल परिग्रह विरमण रूप पांचवा व्रत कहते हैं । कहा है कि-खित्ताइ हिरन्नाइ-धणाइ दुपयाइ कुप्पमाणकमा ।
जोयण पयाण बंधण-कारण-भावेहि नो कुणइ ।।