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सामायिक का महत्व और अतिचार
पड़ती हुई चक्रियों से होने वाली आकुलता को दूर करने वाले तथा अतिप्रचंड मोहराजा के बल को तोड़ने के लिये महा योद्धा समान इस सामायिक को सर्वारंभ में प्रवृत्त होने वाले गृहस्थ ने नित्यप्रति बीच २ में यत्नपूर्वक करना चाहिये।
क्योंकि परम मुनियों ने कहा है किःसावजजोगप्परिवजणठ्ठा-सामाइयं केलियं पसत्थं। गिहत्थधम्मा परमति नचा कुज्जा बुहो आयहियं परत्या।। सामाइयंमि उ कए-समणो इव सावओ हवइ जम्हा।। एणेण कारणेणं - बहुसो सामाइयं कुजा ।।
सावध योग को वर्जने के लिये केवली ने सामायिक बताया है, वह गृहस्थ के धर्म से उत्कृष्ट है, यह जानकर बुध पुरुष ने परार्थ साधन के हेतु आत्महित करना चाहिये।
सामायिक करने से श्रावक श्रमण के समान होता है, इस कारण से वारंवार सामायिक करना चाहिये। - इसके भी पांच अतिचार वर्जनीय है, वहां मन वचन और काया के दुःप्रणिधान रूप तीन अतिचार हैं, अनोभोगादिक से सावध चित्तादिक में प्रवृत्त होना सो मन आदि का दुःप्रणिधान है, तथा स्मृत्यकरण और पांचवा अनवस्थित सामायिक करना। ___ वहां स्मृति का अकरण यह है कि-प्रबल प्रमाद से इतना स्मरण न करे कि-अमुक समय सामायिक करना है, अथवा किया है या नहीं मोक्षानुष्ठान में स्मृति विशेष आवश्यकीय है । ___ जो करने के अनन्तर तुरन्त ही छोड़ दे अथवा जैसे वैसे अनादरवान हो कर करे उसका वह काम अनवस्थित करण कहलाता है।