________________
निराशंस रूप सत्रहवें भेद का स्वरूप
यह सुन सुधन प्रतिबोध पाकर सुश्रावक हुआ। वैसे ही वहां दूसरे भी बहुत से लोग भली भांति चारित्र लेने को तैयार हुए। पश्चात् इन्द्र ने हरिसिंह राजा के हरिषेण नामक पुत्र को राज्य पर स्थापित किया। और पृथ्वीचन्द्र ऋषि भी चिरकाल तक विचर करके मोक्ष को पहुँचे। ___ इस भांति पृथ्वीचन्द्र राजा का चरित्र भलीभांति सुनकर हे भव्यलोकों ! तुम दीक्षा लेना चाहते हुए भी पिता, भाई, स्वजन, स्त्री आदि लोगों के उपरोध से गृह-वास में रहते हुए भी कामभोग में आसक्ति छोड़ो।
इस प्रकार पृथ्वीचन्द्र राजा का चरित्र पूर्ण हुआ। . इस प्रकार सत्रह भेदों में परार्थकामभोगी रूप सोलहवां भेद कहा। अब वेश्या के समान निराशंस होकर गृहवास पाले, तद्रूप सत्रहवें भेद का वर्णन करते हैं।
वेसच निरासंसो अज्ज कल्लं चयामि चिंतंतो।। . परकीयंपिव पालइ गेहावासं सिढिलमावो ॥७६।।
. मूल का अर्थ- वेश्या के समान निराशंस रहकर आजकल में छोड़ दूंगा। यह सोचता रह कर गृहवास को पराया हो, वैसा जानकर शिथिल भाव से पाले।
टीका का अर्थ-वेश्या के समान निराशंस याने आस्था बुद्धि से रहित होकर अर्थात् जैसे वेश्या निर्धन-कामियों से अधिक लाम होना असंभव मान कर थोड़ा सा लाभ प्राप्त करती हुई "आज वा कल इसे छोड़ना है" ऐसा विचार करके उसे मन्द