Book Title: Dharmratna Prakaran Part 02
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 346
________________ सिन्दकुमार की कथा ३३७ आत्मा को महान् उज्वल तपचरण करण रूप अग्नि में डालकर सर्व मल से रहित करूंगा? कब मैं द्रव्य भाव से सलेखना करके परमव में निरपेक्ष रहकर आराधना का आराधन करके प्राणत्याग करूगा ? इस भांति उतम मनोरथ रूप विशाल रथ पर मन चढ़ा कर वह समय व्यतीत करता था। एक दिन सेन मुनि सिद्ध को देखने के लिये वहां आ पहुँचे। अब वे दोनों जिनश्रुत भावित मति से उत्पल के दल समान कोमल वाणी से परस्पर प्रेरणादि करके एक स्थान पर बैठे । इतने में कर्मयोग से उन पर बिजला पड़ी, जिससे दोनों मर गये। जिससे उनका पिता तथा परिजन बहुत दुःखी हो गये। वहां एक समय युगंधर केवली पधारे । तब वसुसेठ ने उनको अपने लड़कों की गति पूछी । तब केवली भगवान् ने उसे कहा कि-सिध्द सौधर्म-देवलोक में गया है और सेन महर्द्धिक व्यंतर देवरूप से उत्पन्न हुआ है । कारण कि-सिद्ध को शुद्ध साधुत्व पालने की इच्छा थी और दूसरे ने साधुत्व ग्रहण करके विरक्तपन यथावत् नहीं पाला। यह सुनकर बहुत से लोग गृहवास में विरक्त चित्त हो गये। पश्चात् गुरु भव्य जनों को प्रतिबोध करने के लिये अन्यत्र विचरने लगे। इस प्रकार हे भव्यों ! तुम सिद्ध का वृत्तान्त सुनकर शुभभाव से गृहवास में प्रीति छोड़कर मन्द आदर वाले हो ओ। इस प्रकार सिद्धकुमार की कथा पूर्ण हुई। इस प्रकार भावश्रावक का सत्रहवां भेद भी कहा। यहां कोई पूछेगा कि, स्त्री और इन्द्रियविषय ये एक ही विषय हैं, अरक्तद्विष्ट, मध्यस्थ और असंबध्द ये तीन भी एक ही विषय हैं तथा

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