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पृथ्वीचन्द्र राजा की कथा
उसकी उक्त स्त्रियों ने भी हर्षपूर्वक तुरन्त वहाँ आकर संवेग पाकर केवलज्ञान प्राप्त किया ।
यह गुणसागर केवली का कहा हुआ महान आश्चर्य देखा । इस भांति सुन सार्थवाह विस्मित मन से सोचने लगा । अब राजा पूछने लगा कि हे भगवन् आपके ऊपर हमको अत्यन्त प्रतिबन्ध (प्रीति) क्यों है ? तब उक्त साधुसिंह बोले
हे राजा ! तू पूर्व भव में चंपा में जयराजा था, और प्रियमती रानी थी और मैं तेरा कुसुमायुध नामक पुत्र था। बाद तुम संयम पालकर विजय - विमान में देवता हुए और मैं सर्वार्थ- सिद्धि. में उत्पन्न हुआ था और वहां से संयोग वश यहां उपजा हूँ। इससे मुझ पर तुम्हारा अत्यन्त स्नेह है। यह सुनकर उनको जातिस्मरण उत्पन्न होकर केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । तब भक्ति से नमने वाले इन्द्र ने उनकी महिमा की । इस प्रकार नगरी में लोगों को चमत्कृत करने वाला परमानन्द फैल गया ।
अब सुधन सार्थवाह मुनीश्वर को नमन करके पूछने लगा कि- आपकी और गुणसागर की इतनी समान गुणता ( समानता ) क्यों लगती है ? तब मुनींद्र बोले कि वह पूर्वभव में कुसुमकेतु नामक मेरा पुत्र था, और उसने मेरे साथ ही प्रत्रज्या ली थी । वह मेरे ही समान धर्माचरण करके कर्मक्षय कर देवभव भोगकर वह कुसुमकेतु देव हे सुन्दर ! यह गुणसागर हुआ है ।
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इस प्रकार सम परिणाम से हमने शुभानुबंधि पुण्य संचित किया | वह समान सुखपरम्परा से हमको अभी फलित हुआ है। ये वधूएँ भी पूर्वभव की स्त्रियां हैं। वे संयम पाल कर अगुत्तरविमान में बस कर पुण्ययोग से हमारी स्त्रियां हुई व भवितव्यता के बल से सामग्री मिलते केवलज्ञान को पाई हैं।