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परार्थ काम भोग पर
. इस प्रकार वह शांत होकर सोचते तथा पूर्वभव में सीखे हुए श्रत का रहस्य चितवन करते हुए शुक्ल-ध्यानस्थ होकर केवलज्ञान को प्राप्त हुआ। तथा वे नववधूएँ भी उसे निश्चल आंखों से एकाग्र हुआ देख हर्षित हो लज्जा से तिरछे नेत्रों द्वारा उसे देखने लगीं, वे सोचने लगीं कि-अहो ! यह भाग्यवान पुरुष उपशम लक्ष्मी में खूब रंजित हुआ है । वह हम दोषयुक्त स्त्रियों में किस भांति आसक्त हो ? हम भी पुण्यवान् हैं कि. ऐसा सद्गुण रूप धनवाला, शिवपुर का सार्थवाह और भवसागर का पार प्राप्त करवाने को समर्थं पति मिला । (हम भी) इसी का अनुसरण करके धर्म का भलीभांति पालन कर अनेक भवों के दुःखों का विच्छेद करेगी। ऐसा सोचती हुई और शुद्धभाव से अनुमोदना करती हुई वे सब भी तुरन्त केवलज्ञान को प्राप्त हुई।
__ तब उसी समय वहाँ जयघोष के साथ पड़ह शब्द से आकाश को भरता हुआ तथा चमकते हुए कर्णकुण्डल वाला सुरमंडल एकत्रित हुआ। उन्होंने उसे लिंग दिया, व उक्त मुनिवर को नमन करके हर्षित हुए देवों ने केवलज्ञान को महामहिमा करो । यह आश्चर्य देख सुमंगला तथा रत्नसंचय सेठ भारी संवेग पाकर केवलज्ञान को प्राप्त हुए तथा यह आश्चर्य देखकर श्री शेखर राजा सपरिवार वहां आकर मुनि को प्रणाम करके उनके सन्मुख बैठा। तथा स्वयं मैं भी यानवाहन तथा परिजन को आगे रवाना कर यहां आने को आतुर होते भी कौतुहल से वहां गया ।
वहां उसने अपना चरित्र मुझे सुनाकर कहा कि- हे सुधन ! तू अयोध्या को जाने को आतुर होते भी यहां आया है। जिससे तुझे विचार होता है कि, साथ दूर होता जाता है और ऐसा आनन्द भी फिर मिलना दुर्लभ है, इससे न जा सकता और न