Book Title: Dharmratna Prakaran Part 02
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 339
________________ ३३० परार्थ काम भोग पर ... इसलिये अभी मुझे परम प्रीति से पिता का वचन मानना चाहिये । यह सोचकर कुमार ने पिता की आज्ञा शिरोधार्य की। अब पृथ्वीचन्द्र कुमार को सकल सामंत व मन्त्रियों के साथ राजा राज्याभिषिक्त करके कृतकृत्य हुआ । कुमार राजा राज्यलक्ष्मी से लेश मात्र भी प्रसन्न न हुआ, तथापि पिता के आग्रह से उचित प्रवृत्ति करने लगा। उसने राज्य में से व्यसन दूर किये, कैदखाने छोड़ दिये और अपने सारे मंडल में अमारीपड़ह बजवाया। उसने प्रायः समस्त लोगों को जिनशासन में अतिभक्त किये। सत्य कहा है कि-जैसा राजा होता है, वैसी ही प्रजा होती है। एक समय वह सभा में बैठा था। इतने में द्वारपाल ने कहा कि-हे देव ! देशांतरवासी कोई सुधन नामक पुरुष आपके दर्शन करना चाहता है। राजा ने कहा कि-अन्दर भेजो। तदनुसार उसने सुधन को अन्दर भेजा। वह राजा को नमन करके उचित स्थान पर बैठ गया। __ राजा ने कहा कि, हे सेठ बोलो ! तुम यहां कहां से आये हो, तथा पृथ्वी में फिरते हुए तुमने कहीं आश्चर्य जनक बात देखी है क्या ? सेठ बोला कि, हे स्वामिन मैं गजपुर नगर से यहां आया हूँ और सारे जगत् को विस्मय उत्पन्न करने वाला एक आश्चर्य भी देखा है । वह इस प्रकार है गजपुर नगर में बहुत से रत्नों वाला रत्नसंचय नामक सेठ था। उसकी सुमंगला नामक भार्या थी, और गुणसागर नामक पुत्र था। अब वह कुमार नवयौवनावस्था को प्राप्त हुआ। तब उसके लिये रत्नसंचय सेठ ने नगर सेठों की आठ कन्याएं मांगी।

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