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स्वयंभूदत्त की कथा
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प्रचंड सुभट घायल हुए, लड़ाई की घबराहट से कई लोग भाग खड़े हए और सार्थपति आंखें फाड़ फाड़ कर देखता रहा, ऐसा भयंकर युद्ध हुआ। __ उस प्रबल बली भीलों के समूह ने क्षण भर में कलिकाल जैसे धर्म को पकड़ता है वैसे ही सारे सार्थ को पकड़ लिया। वह भील सेना सारभूत वस्तु तथा रूपवती स्त्रियों तथा मनुष्यों को पकड़ करके अपनी पल्ली की ओर जाने लगी । स्वयंभूदत्त भी लुट गया और भागने लगा तब उसे धनवान जान कर उन दुष्ट भीलों ने पकड़ा।
उन्होंने उसे बांध कर सख्त चाबुकों से मारा तथापि उसने कुछ भी देना स्वीकार नहीं किया। तब वे नित्य मानता पूरी होने पर जिसका तर्पण करते थे, उस चामुडा के सन्मुख उसे उपहार के निमित्त ले आये । पश्चात् वे उसे कहने लगे कि-रे वणिक ! जो तू जीना चाहता हो तो अभी भी हम को बहुतसा द्रव्य देने की स्वीकृति दे । क्यों अकाल में ही काल के मुख में पड़ता है ?
वे भील इस प्रकार बोलते हुए स्वयंभूदत्त को खड्ग से मारने को तैयार हुए ही थे कि इतने में वहां सहसा भारी कोलाहल हुआ कि-अरे ! इस रांक को छोड़ो, और इस शत्रुओं के समूह की ओर दौड़ो, जो कि अपने स्त्री, बाल, वृद्धों का नाशक है । अतः इसे जाने मत दो।
देखो ! यह पल्ली तोड़ी जा रही है और ये सब घर जलाये जा रहे हैं । इस प्रकार का कोलाहल सुनकर, स्वयंभूदत्त को छोड़ कर चिरकाल के बैरी सुभट आ पड़े जानकर वे भील शीघ्र ही चामुडा के भवन से पवन के झपाटे के समान बाहिर निकले।