Book Title: Dharmratna Prakaran Part 02
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 304
________________ दत्त की कथा ___ दत्त की कथा इस प्रकार है। विश्वपुरी नामक नगरी थी। वह इतनी सुन्दर थी कि उसे दयिता के समान तरंग रूपी बाहुओं से समुद्र सदा आलिंगन करता था। वहां दुश्मनों का अप्रिय करने वाला प्रियंकर नामक राजा था, तथा वहाँ अतुल ऋद्धि वाला दत्त नामक सांयात्रिक (जहाजी) वणिक था। वह एक समय नौका (जहाज) में माल भरकर कंबुद्वीप में आया। वहां बहुतसा द्रव्य उपार्जन करके ज्योंही वह अपने नगर की ओर रवाना हुआ त्योंही प्रतिकूल पवन के सपाटे से उसकी नौका (जहाज) टूट गई। तब वह एक पटिये द्वारा समुद्र पार करके किसी भांति अपने घर आया । - समुद्र में गया हुआ समुद्र ही में से पीछा मिलता है। यह सोचकर वह पुनः घर में जो कुछ था वह जहाज में भर कर रवाना हुआ। पुनः जब वह पीछा फिरा तब दुर्भाग्य वश उसका जहाज टूट गया। तब दुःखी होकर फक्त शरीर लेकर घर आया । इतने पर भी वह पुरुषाकार को न छोडकर पुनः समुद्र यात्रा करने की इच्छा करने लगा किन्तु उसके अत्यंत निधन हो जाने से उसे किसी ने पूजी उधार न दी । तब वह अति विपन्न और खिन्न हुआ, जिससे उसकी भूख तथा नींद जाती रही व वह दीन होकर विचार करता था । इतने में उसे पिता का वचन याद आया । . वह वचन यह था कि-हे पुत्र ! जो किसी भी प्रकार तेरे पास पैसा न हो तो मजबूत मध्य भाग वाले लकड़ी के डब्बे में तांबे के करंडिये के अंदर मेरा रखा हुआ पट्टक (लेख) देखना, और जो कुछ उसमें लिखा है उसे कहीं प्रकाशित मत करना किंतु

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