________________
३१६
मध्यस्थता पर
पुनः राजा बोला कि-मैंने एक जीवित चोर को तौलकर देखा . बाद वह मर गया । तब तौला किन्तु उसके तौल में कुछ भी अंतर न हुआ। अब जो आत्मारूप कोई पदार्थ हो तो तौल में कुछ अधिकता दीखना चाहिये अतएव अभी भी यह बात शंकायुक्त है कि आत्मा परभव-गामी है।। ___ अब संशय रूप विशाल वृक्षों को गिराने में तीक्ष्ण कुल्हाड़े समान गुरु बोले कि-किसी ग्वाल ने कौतुकवश पवन से मशक भरी बाद उसे तौली । इसके अनन्तर उस महा कौतुको ने खाली करके तौली तो कुछ भी तौल अधिक नहीं जान पड़ा । इस प्रकार जबकि स्पर्श होने से जान पड़ते मूर्त वायु में भी तौल में विशेष नहीं दीखता, तब अमूर्त आत्मा में कहां से हो। __इस अवसर पर राजा प्रबोध पाकर हर्षित हृदय से और भक्तिपूर्ण अंग से अंजली जोड़कर, इस भांति बोला:
हे भगवन् ! आपके वचनरूप मंत्र से मेरा मोह पिशाच भाग गया है, किन्तु वंशपरंपरागत नास्तिकवाद को मैं किस प्रकार छोडू? ___ केशि गुरु बोले कि-हे नरनाथ ! विवेक हो तो इसमें कुछ भी नहीं है। वंशपरम्परा से मानी हुई व्याधि वा दारिद्र क्या छोड़ने में नहीं आते ? । तथा हेयोपादेय के विचार को चतुराई को समझने वाले हे राजन् ! इस विषय में एक दृष्टान्त है । उसे सावधान मन रख कर भलीभांति सुन । ___ पूर्व में कितनेक वणिक धनोपार्जन करने के हेतु परदेश को गये । वहां लोहे की खानि में आये, तो उन्होंने वह मंहगा लोहा भारी जत्थे में उठाया । अब साथ के कारण वे आगे चले तो उन्हे कलाई की खानि मिली, तब जो बुद्धिमान थे, उन्होंने लोहा